हिंदी दलित आत्मकथा में पहला पी-एच डी.
हिंदी दलित आत्मकथा में Ph. D. प्राप्त करनेवाले पूरे भारत और हिंदी के पहले शोधार्थी हैं । मैं गौरवान्वित महसूस करता हूँ कि इस शोध-प्रबंध में मेरी भी चर्चा इसरूप में है—“सर्वथा अयोग्य सवर्ण सहकर्मी साम-दाम-दंड-भेद की जुगत भिड़ाकर नौकरी हथियाये , भी हम दलितों की प्रूव्ड प्रतिभा को स्वीकारना नहीं चाहता। अनधिकार नौकरी पाकर प्रतिभाशून्य सवर्ण भी अपने दर्प व जात्याभिमान के शिखर पर होता है । इस बात की गवाही बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवम् उदीयमान आलोचक-विचारक सदानंद पाल के ‘हंस’ के ‘सत्ता , विमर्श और दलित’ विशेषांक में छपे सारगर्भित स्वानुभूतिपरक आलेख ‘ मेहतरानी बहन और चमारिन प्रेमिका’ के बहुविध प्रसंगों से होती है। इस लेख में सदानंद ने हमारी आपसदारी की एक बात लिखी है,जो मेरी वर्तमान नौकरी का ही भोगा हुआ सच है — ”मेरे एक वरिष्ठ मित्र श्री मुसाफ़िर बैठा ने अपने सहकर्मी मिश्र जी को कहा कि आज एक महापुरुष की जयंती है, तो सुनकर मिश्रपात हुआ- ‘क्या सुबह-सुबह आप अम्बेडकरवा के बारे में कहने लगे ?”