…और अब इस दुनिया का सबसे बड़ा माँसाहारी जीव ध्रुवीय भालू भी इस दुनिया में चंद सालों का मेहमान !
ध्रुवीय भालू इस दुनिया का सबसे बड़ा मांसाभक्षी, सर्वाहारी भोजन करनेवाला, सबसे ताकतवर, मुख्यरूप से इस पृथ्वी के सूदूर उत्तरी छोर पर स्थित आर्कटिक परिक्षेत्र का मूल निवासी है, इसके पूर्ण वयस्क नर का वजन 680 किलोग्राम तक भारी-भरकम डीलडौल वाले, लगभग 10 फुट लम्बे, इसकी विशालता का अंदाजा हम ऐसे लगा सकते हैं कि इस दुनिया के सबसे विशालकाय साईबेरियन बाघ से यह आकार में लगभग दुगुने आकार का होता है ! अपवाद स्वरूप अब तक का सबसे विशालकाय ध्रुवीय भालू अलास्का में पाया गया था, जिसका वजन 1002 किलोग्राम था ! इसकी चर्बीयुक्त शरीर इसको पानी में उछाल प्रदान कर इसे तैरने में भरपूर मदद करती है, जिससे यह इतना अच्छा और इतना जबर्दस्त तैराक है कि यह शून्य से नीचे तापमान में भी 6 मील प्रति घंटे की रफ्तार से लगातार तैरते हुए यह 320 किलोमीटर तैर कर समुद्र के तट तक आसानी से पहुँच सकने में सक्षम जीवट वाला जीव, 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने की क्षमता रखनेवाले, एक मील दूर से सील को सूँघकर जान जाने वाले, तीन फीट अंदर बर्फ में दबे सील के बच्चे को सूँघकर पता लगाकर उसे खोदकर निकाल लेने में सक्षम अद्भुत जीव, हल्के पीले से रंग का ध्रुवीय भालू भी अब हम मनुष्यों के कथित आधुनिक विकास के चलते उत्पन्न हो रही ग्लोबल वार्मिंग और पेट्रोलियम के लोभ-लालच में किए जाने वाले कृत्य से इसके बर्फ से आच्छादित रहनेवाले मूल आवासीय निवास के बर्फ के अत्यधिक तेजी से पिघलने की वजह से अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में यह दुःखद रिपोर्ट आई है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन और इसके आवासीय परिक्षेत्र में बहुराष्ट्रीय तेल कंपनियों द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों के लिए वैसे ही असन्तुलित प्राकृतिक छेड़छाड़ जारी रहा, जैसे आज हो रहा है, तो 2040 तक इसकी प्रजनन क्षमता चुक जाएगी, जिसके फलस्वरूप 2050 तक दुनिया के इस अत्यंत खूबसूरत सफेद ध्रुवीय भालूओं के दो-तिहाई भालू विनष्ट हो जाएंगे, 2080 तक कनाडा के क्वींन एलिजाबेथ द्वीप समूह के कुछ भालुओं को छोड़कर डेनमार्क के ग्रीनलैंड द्वीप, नार्वे के स्वारबार्ड, रूस के टूंड्रा, अमेरिका के अलास्का और कनाडा के अधिकतर सुदूर उत्तरी द्वीपसमूहों से भी ये बिलुप्त हो जाएंगे, सन् 2100 तक वे कनाडा से और ग्रीनलैंड से बचे-खुचे ध्रुवीय भालू भी पूर्णतः इस दुनिया से भारतीय चीतों और मारिशस के डोडो पक्षियों जैसे सदा के लिए इस धरती से विलुप्त हो जाएंगे ! एक दुःखद स्थिति ये पैदा हो रही है कि आर्कटिक महासागर में अत्यधिक बर्फ पिघलने से बर्फ या जमीन के ठोस धरातल के बीच की दूरी बहुत ज्यादे ही बढ़ गई है, जिससे समुद्र में फंसे ध्रुवीय भालुओं को उनकी क्षमता से बहुत ज्यादे समुद्र में अन्दर फंस जाने पर वे पहले से शिकार न मिलने की वजह से कमजोर भालू थकावट से त्रस्त होकर बीच समुद्र में ही डूबकर मर जाने को अभिशापित हो रहे हैं ! एक वैज्ञानिक आकलन के अनुसार ध्रुवीय भालुओं की 19 प्रजातियों में कुल मिलाकर दुनिया भर में केवल 2600 ध्रुवीय भालू ही अब बचे हैं ! वैज्ञानिकों के अनुसार ध्रुवीय भालुओं की कुल 19 प्रजातियाँ हैं, जिनमें 8 प्रजातियाँ तेजी से विलुप्त हो रहीं हैं, 3 प्रजातियाँ स्थिर हैं, एक प्रजाति बढ़ रही है, परन्तु 7 प्रजातियों के बारे में समुचित आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं।
इसके जबड़े में 42 दांत होते हैं, जो इसे उच्च माँसाहारी जीव होने को प्रदर्शित करते हैं। आर्कटिक भूमंडल क्षेत्र में लाखों-करोड़ों की संख्या में उपस्थित मूंछवाली सीलें इसका मुख्य भोजन हैं, ये सीलें जब बर्फ में बने छेदों से साँस लेने के लिए अपना मुँह बाहर निकालतीं हैं या बर्फ पर आराम कर रही होतीं हैं, तब ये घात लगाकर, उनका शिकार कर लेता है। कभी-कभी यह पूर्ण वयस्क बालरस को भी मार देता है ! परन्तु खुले पानी वाले समुद्र में या भूमि पर यह सीलों का शिकार नहीं कर पाता, वैसे ध्रुवीय भालू के भोजन में कस्तूरी बैल, बारहसिंगा, पक्षी, अंडे, मूषक, शैलफिश, केकड़े, अन्य भालू, पौधे मसलन बेरियाँ, जडें, और समुद्री घास आदि भी हैं, परन्तु इस भारी-भरकम जीव की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति मुख्यतया समुद्री सीलों के माँस से ही हो पाती है। ध्रुवीय भालू गजब के शिकारी होते हैं, इसके शिकार को अक्सर इसकी उपस्थिति का अहसास ही नहीं होता, उसे अहसास तब होता है, जब यह उस पर हमला कर चुका होता है, इसका हमला सदा ही प्राणघातक होता है। यह बहुपत्नीवादी होता है ऐसे भी उदाहरण पाए गए हैं, जिनमें एक साथ जन्में शावकों के पिता अलग-अलग ध्रुवीय नर भालू थे। !
मनुष्योचित औद्योगिकीकरण की वजह से पूरी धरती का तापमान तेजी से बढ़ने से समूची धरती की बर्फ तेजी से पिघल रही है, शोधवैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक मंडल की 40 प्रतिशत तक बर्फ पिघल चुकी है, जिससे ध्रुवीय भालुओं को खुले समुद्र में शिकार करने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, वास्तविकता यह है कि खुले समुद्र में ये अपने मनपसंद शिकार सीलों का शिकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि पानी में इसके शिकार सीलों की तैरने की रफ्तार इनसे बहुत ही तेज होती है, इससे ये भूखों मरने की कग़ार पर पहुँच गये हैं, इसके चलते ये नरभक्षी भी बन रहे हैं, सबसे बड़ी बात यह हुई है कि भूख से व्याकुल ध्रुवीय भालू अब एक-दूसरे को ही मारकर खा रहे हैं ! इन्हें मनपसंद सील का शिकार न मिल पाने और भूख ने सबसे ज्यादे अपने से आकार में लगभग आधी, छोटी और कमजोर ध्रुवीय बच्चे वाली भालू माँ और अपने छोटे-नन्हें असहाय बच्चों को ही मारकर खा लेना ज्यादे आसान लगता है, ज्ञातव्य है मादा ध्रुवीय भालू वजन और आकार में नर ध्रुवीय भालुओं से लगभग आधी होतीं हैं, जो इनका बहुत ही आसान शिकार बन रहीं हैं। अब ध्रुवीय भालू अपने बड़े शिकारों को जमीन या बर्फ में दबा देने की कला, जिसे ‘कैशिंग ‘ कहते हैं का तरीका भी आजमा रहे हैं, ये आदतें उन भूरे या ग्रिजली भालुओं में अभी भी पाई जाती है, जो अपेक्षाकृत कम बर्फवाली जगहों पर यथा रूस के साइबेरिया या अन्य आर्कटिक क्षेत्र के देशों के अन्दरवाली जगहों पर घने जंगलों आदि स्थानों में रहते हैं, पाई जाती है। जीव वैज्ञानिकों के अनुसार ध्रुवीय भालू और भूरे भालुओं की ये दो शाखाएँ आज से डेढ़ लाख साल पहले अलग-अलग हो गईं थीं । वर्तमान समय में ध्रुवीय भालू आर्कटिक क्षेत्र और दुनिया के भी पारिस्थितिकी में शीर्ष के सबसे विशाल और सुन्दर जीव हैं। आज अगर सभी आर्कटिक देश ध्रुवीय भालू को संरक्षित करने और बचाने के नियमों का पालन करते हैं, तो ध्रुवीय भालू का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। पूरे विश्व विरादरी को उक्त आर्कटिक देशों को यह सलाह देना चाहिए और उन पर दबाव भी डालना चाहिए कि उक्त देश इस समझौते को पालन करना सुनिश्चित करके तुरंत अपने-अपने देशों में इस अद्भुत जीव के शिकार को प्रतिबंधित करके इस विलुप्ति के कग़ार पर खड़े जीव को इस धरती से विलुप्त होने से हर हालत में बचाएं, इन्हें मारिशस के डोडो पक्षी और भारतीय चीतों की तरह विलुप्त न होने देने के लिए सार्थक, सजग व मानवीय प्रयास अवश्य करना ही चाहिए।
— निर्मल कुमार शर्मा