घर पे ही रहता हूं
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बाल – बच्चों को निहारता हूं , लेकिन आंखें मिलाने से कतराता हूं .
डरता हूं , थर्राता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बिना किए अपराध बोध से भरे हैं सब
इस अंधियारी रात की सुबह होगी कब .
मन की किताब पर नफे – नुकसान का हिसाब लगाता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
सामने आई थाली के निवाले किसी तरह हलक से नीचे उतारता हूं .
डरता हूं , घबराता हूं , पर सुनहरे ख्वाब से दिल को भरमाता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
— तारकेश कुमार ओझा