कुण्डली/छंद

वह रति को लजाती है

लालिमा सुशोभित मुखमंडल में उनके,
अपूर्व सौंदर्य नख-शिख में समाया है।
व्याकुल हृदय को लुभाते हैं कंज नयन,
वाणी में मधुरता अमिय रस पाया है।
मोहित मदन मन निहारे मृदुल तन,
प्रेमी बादल अनंत अम्बर में छाया है।
है विधाता का सृजन अनुपम मनोहर,
अंग-अंग गढ़ रुचि नेह से बनाया है।
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धवल दुग्ध में जैसे केशर की आभा मिली,
भुवन मोहिनी वह रति को लजाती है।
नैन-बाणों से करती कोमल प्रहार वह,
सुप्त हृदय में काम भावना जगाती है।
मंद हास लख मुस्काते हैं सुमन सकल,
नूपुर-धुन से मन मोहती रिझाती है।
देह से मलय चंदन की उपजे सुवास
द्वार, गली, मानस मंदिर महकाती है।
 — प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - [email protected]