वह रति को लजाती है
लालिमा सुशोभित मुखमंडल में उनके,
अपूर्व सौंदर्य नख-शिख में समाया है।
व्याकुल हृदय को लुभाते हैं कंज नयन,
वाणी में मधुरता अमिय रस पाया है।
मोहित मदन मन निहारे मृदुल तन,
प्रेमी बादल अनंत अम्बर में छाया है।
है विधाता का सृजन अनुपम मनोहर,
अंग-अंग गढ़ रुचि नेह से बनाया है।
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धवल दुग्ध में जैसे केशर की आभा मिली,
भुवन मोहिनी वह रति को लजाती है।
नैन-बाणों से करती कोमल प्रहार वह,
सुप्त हृदय में काम भावना जगाती है।
मंद हास लख मुस्काते हैं सुमन सकल,
नूपुर-धुन से मन मोहती रिझाती है।
देह से मलय चंदन की उपजे सुवास
द्वार, गली, मानस मंदिर महकाती है।
— प्रमोद दीक्षित मलय