सरकारी डॉक्टर की पीड़ा
देश एक सरकारी डॉक्टर का दर्द…
पारासीटामोल थक गया; अब तू ही बोल।
कैसे करूँ तनहा तुझसे; पीएचसी में बुखार कंट्रोल।
उधर एमोक्सि ने आवाज दी,
डॉक्टर साहब अभी मैं स्टॉक में हूँ पड़ी।
पर चेतावनी है; ध्यान दें,
किसी भी मरीज को चार कैप्सूल से जादा न लिख दें।
मैनें फ़िज़ूल की उससे बहस की,
चार कैप्सूल से तुम्हारा कोर्स पूरा होगा नही।
एमोक्सि हंसीं और साथ में सेप्टरण भी,
लगता है इस डॉक्टर की पीएचसी में पोस्टिंग है नई-नई।
बोला बगल में बीटाडायन का बोतल खड़ा,
महीनों से बिन ढक्कन पड़ा-
सुन लो ये डाक्टर बाबू,
अगर चाहते हो मरीज रहे काबू,
तो दवा का पूरा कोर्स भूल जाओ,
और मुझे तो बिन ढक्कन खोले ही घाव पर लगाओ।
तब तो एक बार के बजट में,पांच साल चलूँगा,
अपने अंदाज़ से ख़त्म किया तो साल भर खलूंगा।
अब पानी मिले सेवलोन की बारी आई,
बोला वो मुझसे भूल जा मेडिकल की पढाई।
तेरी पढाई के इलाज़ से,
नही कोई मेल सरकार के मिज़ाज़ से।
सरकार का सिर्फ एक काम ,
खोलो अस्पताल सरे-आम।
फिर दिए दिखाय,
जनता को सारे उपाय।
कि हमने पीएचसी खोल दिया है,
डॉक्टर मौजूद रहे चौबीसो घंटा; ये बोल दिया है।
हॉस्पिटल में सारी सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराई जायेगी,
डायल करो 104/108; एम्बुलेंस घर पर दौड़ी चली आएगी।
पर ये नेता जी शायद भूल गए,
104/108 आये दिन रहती है, गैराज में खड़े।
और बिन सुई-दवाई,
कैसे इलाज़ करे मेरा डॉक्टर भाई।
इतने में कॉटन और गेज ने अपना
एक्सपायरी डेट का लेवल खोला,
और पुरे एंटीसेप्टिक अंदाज़ में बोला-
इतना प्रवचन डॉक्टर साहब क्यों सुनते हो,
सरकार की कागज़ी बातों को क्यों चुनते हो?
कैसे सिमित दवाओँ से हर मर्ज दूर हो,
क्यों डॉक्टर स्टॉक के हिसाब से
दवा लिखने को मज़बूर हो?
इतना तो किडनी ट्रे में पला बढ़ा,
बेचारा आर्टरी फोर्सेप; जो अब है जंग चढ़ा।
भी बता देगा,
कि अब मुझसे कोई काम न होगा।
फिर भी उस सकिस्सोर से,
जाने कैसे-कैसे, आप काम निकाल लेते हो।
और सरकारी आदेश में,
ढल जाते हो आप भी उसी परिवेश में।
कि हर पेट की बीमारी की दवा एम टी जेड है,
ठीक हुआ तो हुआ;नही तो हम आपके कौन हैं?
अचानक गुस्सा हुआ आर एल का बोटल,
दिया जवाब में सम टोटल
क्या पूछते हो पीएचसी के डॉक्टर से,
कभी पूछा उनसे; किस दर्द से हैं वो गुजरे?
डी एन एस बोला इंट्राकैथ के साथ,
भाई एन एस तुम्हें नही पता;क्या है बात।
डी 5 प्रतिशत बोल रहा था,
सारे सरकारी राज खोल रहा था।
कि नेताओं का ये फार्मूला है पुराना,
कैसे अपने एरिया के पब्लिक को है उल्लू बनाना।
एक पीएचसी हॉस्पिटल बिना किसी संसाधन के खोल दो,
उद्धघाटन करो और पब्लिक को बोल दो।
आज से हर बीमारी का इलाज़ यहीं होगा,
जो डॉक्टर समय पर नही पहुंचें;मुझसे कहना होगा।
पर नेताजी अपने उद्धघाटन किये अस्पताल पे–
विश्वाश नही कर पाते हैं,
और अपनी सर्दी-जुखाम का भी इलाज़ करवाने;
एयर एंबुलेंस से मेदांता से अमेरिका उड़े जातें हैं।
अब सिलाई का धागा,
कोने में पड़ा अभागा,
बोला- ऐ पीएचसी के डॉक्टर,
मुझपे एक अहसान कर-
जिससे मेरी आत्मा तृप्त हो जाये,
जब भी कोई नेता चोट खाये,
अपने उद्धघाटन किये हुए अस्पताल में आये,
जहाँ तुझे दिए हुए है बिठाये,
मुझ से सी देना उसका जख्म;
बिन सयोलोकैने लगाये।
डॉक्टर तू भविष्य है,
कैसे तुझ से कोई खेल पाये।
और डेरिफायललिन डेकसोना की कसम,
आमेज़ रणक के साथ पूछे तुझसे हम।
क्या बेरोजगारी इतनी भारी है,
की साढ़े पाँच साल की पढाई पे;
पाँच साल की सरकार भारी है?
कविता के लिए
डॉक्टर भाई बीएनके शाह जी को
एतदर्थ दुआ सलाम, मुदमंगल प्रणाम !