क्या प्रेमचंद ‘डरपोक’ थे ?
दर्जनों उपन्यास, 350 से ऊपर कहानियां, थोड़े लेख और कविताएं भी, बावजूद उन्हें किन कारणों से ‘मुंशी’ कहाते रहे, पता नहीं ! पोस्टमास्टर भी थे, जिसके कारण उसे मुंशी भी कहा जाता है, लेकिन ‘मुंशी’ के जो भी कारण रहे हों, वे आज के टोनिजिबल हिंदी के ‘मुंशी’ अवश्य रहे। जो भी हो, सामंत के इस मुंशी ने आजीवन फकीरी में गुजारे और तीन शादियाँ की ! तीन पत्नियाँ एक के बाद एक रहे हों शायद !
गुलाम भारत में जन्म लेकर और अंग्रेजों के भय और डाँट से ‘नवाब’ और ‘धनपत’ से दूर हो गए, फिर अपने वतन को सोज़ (सँजो) नहीं पाए…. अंग्रेजी सत्ता में इस भारतीय लेखक का जेल नहीं जाना कइयों को यह सालता है कि ये अंग्रेजों के पिट्ठू तो नहीं थे…. या क्या प्रेमचंद कायर थे ? नवाब की राय नहीं बनी, धनपत की राय नहीं बनी, तो प्रेम का मुंशी (चंड) बन गए ! वे अंग्रेजों से भागते फिरे, छद्मता ऐसी की कभी धराये नहीं और जेल नहीं गए ।
….किन्तु वे सवर्ण कायस्थ होकर भी गरीब मज़दूर थे, तभी तो उन्होंने लिखा- ‘जिसदिन मैं ना लिखूँ, उसदिन मुझे रोटी खाने का अधिकार नहीं है।’ हाँ, 31 जुलाई को उसी प्रेमचंद की जयंती है । प्रेमचंद में बसनेवालों को स्निग्धीय शुभकामनाएं कि यह एक स्कूल इंस्पेक्टर की वर्ष 2020 में 141वीं जयंती है। ध्यातव्य है, स्कूल में दादागिरी पद (इंस्पेक्टर) पर भी रहे।
….परंतु यह अकाट्य सच है कि प्रेमचंद कथा सम्राट थे, तो उपन्यास सम्राट भी ! यह भी सच है, इस पोपले गालवाले शख़्स ने हिंदी ही नहीं, सम्पूर्ण संसार को ‘गोदान’ दिए, पर वे न प्रो. मेहता बन सके, न ही होरी ही ! मेहता और होरी के बीच झूलते रह गए…. मालती पाने की लालसा में धनिया में अटक गए !
गुलाम भारत में प्रणीत ‘गोदान’ में अंग्रेजों की चर्चा न होना, सभी राष्ट्रभक्तों को सालता है कि यह उपन्यास भारतभर के जीवन को किसतरह से प्रतिनिधित्व कर रही है ? अंग्रेजों के विरुद्ध ‘सोजेवतन’ के बाद नहीं लिखना उनके कायराना फलसफा तो नहीं ! ‘गोदान’ में बेटा गोबरधन भी काबिल नहीं निकले ! वैसे प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय भी तो पिता की जीवनी ‘कलम का सिपाही’ लिखकर ही साहित्य अकादेमी पुरस्कार पाए थे।