7 अतिशय मर्मभेदी कविताएँ
1.
उद्घाटन
नेताजी ने
वृक्षारोपण का,
ऐसा अभियान चलाया;
कि उद्घाटन में सर्वप्रथम-
‘नागफनी’ का
पौधा लगाया !
2.
स्त्री या इस्त्री
एक ‘इस्त्री’…
कपड़े को सीधी करती,
और दूजी ‘स्त्री’…
मरद को !
वाकई स्त्री अगर नहीं हो,
तो सभी टेढ़े ही रह जाय !
3.
राखी पर्व
इसबार फिजिकल डिस्टेंसिंग है,
पेड़-पौधों को राखी बाँधिये !
वैसे भाइयों की रक्षा
वक्त-बेवक्त बहन ही करते हैं,
इसलिए तो…..
बहन को राखी बाँधने हैं,
किन्तु इसबार तो
दैहिक दूरी के कारण
पेड़-पौधों को राखी बाँधिये !
4.
डॉक्टर दा
आप जिसमें हैं,
पूरी दुनिया उम्मीद लगाए हैं,
इसलिए आपको हर हालत में
स्वस्थ रहने ही होंगे !
मैं तो साहित्य और गणित में
रमकर समय बीता ही देता हूँ,
परहेज हूँ,
किन्तु अदृश्य दुश्मन का क्या पता ?
कब ढील हो और वो कहर बरपा दे !
महामारी से सुरक्षित रहिये !
5.
छुछुन्दर
छू — छू ‘अंदर’
यानी छुओ पर
ये अंदर की बात है,
‘छुछुन्दर’ कहीं के !
अरे, मत छुएंगे,
भरोसा रखिये !
किन्तु गाली तो
नहीं दिया कीजिए !
6.
दोस्ती
पत्रकार और हाजमोला के बीच
दोस्ती टिकती नहीं !
पहले के पेट में बात पचती नहीं,
दूजे सबकुछ पचा जाती है !
यही तो गोलमोल है,
दोनों की रीति-नीति !
फिर भी जीवन एक संगीत है !
7.
रेपिस्ट
बलात्कारी नेतवन
और प्रेशर कुकर में
छनती खूब है,
एक रेप कर प्रमाण मिटा डालते हैं;
दूजे ‘कुकरवा’ तो
हड्डी तक गलाकर प्रमाण मिटा देते हैं !
यह तो रक्षक के भक्षक बनने की
बात रही !
क्यों न किशोरी ऐसे जनों से
मिलने से बचे-बचाएं !