ग़ज़ल
बेबस हुआ है आदमी कोरोना काल में
उलझी है रूह आज फिर ऐसे सवाल में
अपना अजीज कोई है बेसुध पड़ा हुआ
जा भी नहीं सकता है मिलने अस्पताल में
दो शब्द भी धीरज के पास किसी के नहीं
कैसे सुकून पाये मन मन के मलाल में
प्रभु तू बता हम कैसे जिए किस तरह जिए
पहुंचा दिया किस्मत ने हमें कैसे हाल में
बाहर जमीं पे जाल में बस फड़फड़ा रही
मछली तो फंस चुकी है मछेरे के जाल में
— मनोज श्रीवास्तव