प्रेमचंद के दर्जनों उपन्यास, 350 कहानियाँ और कुछ कविताएँ
प्रेमचंद की मूलभाषा उर्दू/फ़ारसी रही है, खड़ीबोली हिंदी तो उसने बाद में अपनाए ! वैसे आजादी के बाद भी कई वर्षों तक कायस्थ परिवारों में उर्दू/फारसी पढ़ने व सीखने की परंपरा रही है। इंटरनेट पर उपलब्ध स्नातक प्रमाण-पत्र के अनुसार उनके मूलनाम ‘धनपत राय श्रीवास्तव’ है, जैसे कवि बच्चन का मूलनाम ‘हरिवंश राय श्रीवास्तव’ है। ‘प्रेमचंद’ छद्मनाम या उपनाम या कलमनाम से पहले समयानुकूल उन्होंने कई उपनामों को लगाए !
तब से लेकर अब भी पुलिस थानों अथवा कोर्ट-कचहरी में उर्दू जानकार मुंशी होते आये हैं तथा यह तब और आजादी के बाद कुछ वर्षों तक कायस्थ वर्ग से ही ‘मुंशी’ बनते थे या बनाये जाते थ, खासकर लेखा-बही कार्य करनेवालों को मुंशी, मुनीम, लिपिक, किरानी, बाबू, क्लर्क इत्यादि कहे जाते थे। प्रेमचंद के पितामह ‘पटवारी’ थे, पटवारी भी एकतरह से अकाउंटेंट या तहसीलदार जैसे होते हैं । उनके पिता ‘पोस्टमास्टर’ या डाकघर के किरानी थे, यह पद भी ‘मुंशी’ संज्ञार्थ अभिहित रहा है । पटना के डाकघरों में अब भी पोस्टमैन को ‘मुंशीजी’ ही कहा जाता है। वैसे तब ब्रांच पोस्टऑफिस होते थे, वो अब भी है और जो उनमें ‘हेड’ होते थे, वह ब्रांच पोस्टमास्टर कहलाते थे, अधिकांश मामले में उनके घर पर ही पोस्टऑफिस होती रही है तथा उक्त पोस्टमास्टर की संतान भी अघोषित रूप से पोस्टमास्टर हो जाते थे, ‘मुंशी’ सम्मानोपाधि एतदर्थ भी हो सकते हैं !
उनके स्नातक विषयों में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास शामिल थे। तब तो खड़ीबोली हिंदी में उन्होंने स्वाध्याय के बूते ही पकड़ बनाए ! पहले तो उन्होंने उर्दू में अनेक रचनाएँ प्रणीत की, पश्चात खड़ीबोली हिंदी में ! वैसे उन्होंने अनुवाद भी किए हैं, लेव टॉलस्टॉय जैसे रशियन लेखक की रचनाओं के । इससे स्पष्ट है कि उन्होंने रूसी भाषा भी सीख लिए थे। ‘भारतकोश’ के प्रसंगश: ‘हिंदी शिक्षक बंधु’ (10.08,2017) में श्री विजय के. मल्होत्रा लिखते हैं- “शायद कम लोग जानते हैं कि प्रख्यात कथाकार प्रेमचंद अपनी रचनाओं की रूपरेखा पहले अंग्रेजी में लिखते थे और इसके बाद उसे हिंदी अथवा उर्दू में अनूदित कर विस्तारित करते थे।”
किसी भी अनुवाद में यह जरूरी नहीं है कि यह हूबहू व शब्दश: अनूदित ही हो ! इसतरह से अनूदित कहानियाँ या रचनाएँ भी अनुवादक की अपनी 75 फीसदी मौलिकता लिए होती हैं, मूल लेखक के शाब्दिक भाव से इतर, किन्तु कथ्य व तथ्य से बाहर नहीं !
‘प्रेमचंद साहित्य’ पर डॉ. कमल किशोर गोयनका के द्वारा शोध-कार्य किए जाने के बाद प्रेमचंद प्रणीत रचनाओं को अंतिम या तय मान लिया जाना उचित नहीं है, क्योंकि प्रेमचंद के जीवनकाल में सभी रचनाओं, खासकर कहानियों को पूर्ण संकलित नहीं किया जा सका था ! हाँ, कुछ कथा-संकलन तो प्रकाशित हुई थी, किन्तु पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कहानियों और अप्रकाशित कथा-पांडुलिपियों को पुस्तकाकार रूप में संकलित होने जैसे कार्य तब प्रेमचंद की स्मृति में भी नहीं होंगे ! प्रेमचंद प्रणीत रचना-संसार को जानने के लिए डॉ. गोयनका के द्वारा निर्धारित सीमा के इतर भी जिज्ञासाजीवी बनने होंगे ! रामपुर रज़ा लाइब्रेरी (Rampur Raza Library), जो संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार का एक संस्थान है, उनके बुलेटिन (13th issue, July 2018) में ‘प्रेमचंद की लगभग 350 कहानियाँ’ वाक्यांश उद्धृत है, जिसे गूगल सर्च की जा सकती है। तब लघुकथा नहीं, अपितु लघुकहानी होती थी, वैसे आज के प्रसंगश: यह एक-दूसरे के पर्याय नहीं है। प्रेमचंद ने उर्दू, हिंदी और अनूदित कहानियों से इतर लघुकहानियाँ भी रचे, जो इनमें शामिल हैं।
जहाँ तक प्रेमचंद के उपन्यासों या उपन्यास के शीर्षकों से रूबरू होने की बात है, तो हम उनके उर्दू उपन्यास, हिंदी उपन्यास और बाल उपन्यासों को समेकित रूप से देखना चाहेंगे ! श्री ललित कुमार के प्रसंगश: गद्यकोश (www. gadyakosh.org), अन्य वेबसाइटों में ‘हिंदी कहानी’ (www.hindikahani.hindi-kavita.com), भारतकोश, विकिपीडिया इत्यादि से खंगाले गए अध्ययन के अनुसार, प्रेमचंद के उपन्यासों को अग्रांकितरूपेण लिख सकते हैं, यथा-
1. हमखुर्मा या हमसबाब या प्रेमा,
2. असरारे मुआबिद या असरारे मआबिद या देवस्थान रहस्य,
3. रूठी रानी,
4. किशना या गबन,
5. जलवाए ईसार,
6. निर्मला,
7. रंगभूमि या चौवानेहस्ती,
8. कर्मभूमि,
9. वरदान,
10. प्रतापचन्द्र,
11. श्यामा,
12. कृष्णा,
13. प्रतिज्ञा,
14. सेवासदन या बाज़ारेहुस्न,
15. प्रेमाश्रम या गोशाएआफ़ियत,
16. कायाकल्प,
17. अलंकार,
18. अहंकार,
19. कुत्ते की कहानी,
20. रामचर्चा,
21. दुर्गादास,
22. मनमोदक,
23. नादान दोस्त,
24. गोदान,
25. मंगलसूत्र।
— इन उर्दू/हिंदी उपन्यासों या धारावहिक उपन्यासों, बाल उपन्यासों के लेखक प्रेमचंद जी हैं, जिनमें उनके अन्य उपनाम/उपनामों या नाम से लिखित उपन्यास भी शामिल हैं ! …. और भी खोजबीन को लेकर अन्वेषण जारी है….
जहाँ तक प्रेमचंद द्वारा कविता या गीत लिखने की बात है, तो इस संदर्भ में डॉ. कमल किशोर गोयनका से श्री रोहित कुमार हैप्पी द्वारा वेबसाइट पत्रिका ‘भारतदर्शन’ के लिए जो इंटरव्यू लिया गया है, एक जवाब में डॉ. गोयनका कहते हैं- “प्रेमचंद ने कबीर, सूरदास और महादेवी वर्मा की कविताओं का उपयोग किया है और ‘रंगभूमि’ उपन्यास में एक गीत स्वयं भी लिखा है।”
इसके साथ प्रेमचंद लिखित अन्य कविता या गीत भी है, उनकी कहानी ‘रसिक संपादक’ में कविता ‘क्या तुम समझते हो, मुझे छोड़कर भाग जाओगे’ हालाँकि कहानी की पात्रा कवयित्री कामाक्षी के प्रसंगश: है, किन्तु इतिहास में इस नाम से कोई कवयित्री नहीं है, न ही यह कविता महादेवी वर्मा की ही है। प्रेमचंद की कहानी ‘गुरुमंत्र’ में ‘माया है संसार संवलियाँ, माया है संसार’ कविता उनकी ही है, तो कहानी ‘रंगीले बाबू’ में उर्दू शे’र के साथ-साथ एक बाजारू या बाज़ारी शे’र भी है, यथा- ‘तुम्हें गैरों से कब फुरसत…’ के शायर कोई और नहीं, कथाकार ही है । कहानी ‘कोई दुःख न हो तो बकरी खरीद लो’ में कविता ‘रब का शुक्र अदा कर भाई, जिसने हमारी गाय बनाई’ के कवि भी प्रेमचंद जी हैं, अन्य कवियों के होने का साक्ष्य नहीं मिलते ! एतदर्थ, कथाकार ही ‘कवि’ हैं!
इसतरह से प्रेमचंद ने लगभग 350 या 350 से अधिक कहानियाँ, दर्जनों उपन्यास और कुछ गीत या कविताएँ भी रचे!