ग़ज़ल
महका महका मधुबन जैसा
कोरा मन है दरपन जैसा
काली मतवाली अँखियों में
घिर आया कुछ सावन जैसा
इतना अपनापन है दिल में
लगता है घर आँगन जैसा
अँगड़ाई लेता है यौवन
रूप सजा कर दुल्हन जैसा
सौ बल खाता लहरा कर तन
दम – दम दमके कंचन जैसा
आँखों में ये क्या छलका है
बिलकुल आबे-ज़मज़म जैसा
रिश्ता हो तो प्यार भरा हो
बन ना जाये बन्धन जैसा
बालेपन में बोझ सँभाले
बचपन लगता पचपन जैसा
— रेखा मोहन