राष्ट्रकवि मैथिलीशरण की जन्म-जयंती
राष्ट्रकवि गुप्त जी की मृत्यु 78 वर्ष की आयु में हो गयी। हिंदी कविता के अनुसार, मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा चिरगाँव, झाँसी के राजकीय विद्यालय में हुई । इन्होंने घर पर ही संस्कृत, हिन्दी तथा बांग्ला साहित्य का व्यापक अध्ययन किया। आपकी कविताओं में बौध्द दर्शन, महाभारत तथा रामायण के कथानक आते हैं। आपकी रचनायें हैं, यथा- महाकाव्य: साकेत; खंड काव्य-कविता संग्रह: जयद्रथ-वध, भारत-भारती, पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान, कुणाल गीत, पत्रावली, स्वदेश संगीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध; नाटक: रंग में भंग, राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, विरहिणी व्रजांगना, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, हिडिम्बा, हिन्दू; अनूदित: मेघनाथ वध, वीरांगना, स्वप्न वासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम।
गुप्त जी संस्कृति के संवाहक कवि थे । विकिपीडिया के अनुसार, मैथिलीशरण गुप्त के जीवन में राष्ट्रीयता के भाव कूट-कूट कर भर गए थे। इसी कारण उनकी सभी रचनाएं राष्ट्रीय विचारधारा से ओत प्रोत है। वे भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के परम भक्त थे। परन्तु अन्धविश्वासों और थोथे आदर्शों में उनका विश्वास नहीं था। वे भारतीय संस्कृति की नवीनतम रूप की कामना करते थे। मैथिलीशरण गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता और गाँधीवाद की प्रधानता है। इसमें भारत के गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता का ओजपूर्ण प्रतिपादन है। आपने अपने काव्य में पारिवारिक जीवन को भी यथोचित महत्ता प्रदान की है और नारी मात्र को विशेष महत्व प्रदान किया है। गुप्त जी ने प्रबंध तथा मुक्तक दोनों की रचना की। शब्द शक्तियों तथा अलंकारों के सक्षम प्रयोग के साथ मुहावरों का भी प्रयोग किया है।
साकेत तथा पंचवटी आदि अन्य ग्रन्थ सन 1931 में पूर्ण किये। इसी समय वे राष्ट्रपिता गाँधी जी के निकट सम्पर्क में आये। ‘यशोधरा’ 1932 ई. में लिखी। गाँधी जी ने उन्हें ‘राष्ट्रपति’ की संज्ञा प्रदान की। तारीख 16 अप्रैल 1941 को वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए। पहले उन्हें झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया। सन 1948 में आगरा से उन्हें डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया। सन 1952-1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन 1953 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सन 1962 में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा बीएचयू के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। वे वहाँ मानद प्रोफेसर के रूप में नियुक्त भी हुए। सन 1954 में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। जन्मदिवस पर राष्ट्रकवि को सादर नमन और भावभीनी श्रद्धांजलि !