व्यंग्य – मक्खनबाजी और बेईमानी कम्पल्सरी है भाई!
जी हाँ ! बिलकुल सही पढ़ा है आपने! खुद के द्वारा किए गए एक शोध से यह कहने में मुझे कोई गुरेज नही कि यह दुनिया सिर्फ और सिर्फ मक्खनबाजी और बेईमानी की बुनियाद पर टिकी हुई है! दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति में मख्खनबाजी और बेईमानी का गुण विद्यमान है चाहे वह नर हो या नारी!
मैं तो यह बात भी दावे के साथ कह रहा हूँ कि यदि मक्खनबाजी और बेईमानी का रास्ता छोड़ दिया जाए तो दुनिया जैसी चल रही है वैसे चल ही नहीं पाएगी! मक्खनबाजी और बेईमानी की राह छोड़ देने से सब तहस-नहस हो जाएगा! रिश्ते नाते खत्म हो जाएंगे! मक्खनबाजी और बेईमानी छोड़ देने से आपसी प्रेम और भाईचारा खत्म हो जाएगा! आपने कभी सोचा है कि एक औरत अपने पति के बारे में जो सोचती है वह कह ही नहीं सकती या एक पति अपने पत्नी के बारे में जो सोचता है वह कहता ही नहीं जीवन पर्यन्त क्यों ? क्योंकि यदि दोनों एक दूसरे को वह कह देंगे जो सच्चाई है तो यकीन मानिए दोनों के मध्य लाठीचार्ज की नौबत आ सकती है इसलिए दोनों मक्खनबाजी और बेईमानी का सहारा लेकर रिश्ते को लोकलाज के डर ढो रहे होते हैं!
नौकर अपने मालिक से और मालिक अपने नौकर से एक दूसरे से वह कह ही नहीं सकते जो एक दूसरे के बारे में सोचते हैं ! मेरे जीवन में आपके जीवन में हजारों ऐसे लोग या दोस्त होंगे जिनको देखते ही लगता है जूता लेकर तब तक पीटो जब तक थक ना जाओ! लेकिन हम ऐसा चाहकर भी नहीं करते बेईमानी का सहारा लेते हैं मक्खनबाजी का सहारा लेते हैं और जूता मारने के बजाए हम उनको मालाएँ पहनाते हैं उस व्यक्ति से या दोस्त से अपने दिखावे के रिश्ते को जिंदा रखने के लिए!
ठीक यही स्थित दो युगल प्रेमी जोड़ों के मध्य होती कुछ समयोपरांत दोनों का मन एक दूसरे से प्रेम करके ऊब चुका होता है लेकिन दोनों ढो रहे होते हैं एक दूसरे को,गाली देने का मन होता है लेकिन मक्खनबाजी और बेईमानी का सहारा लेते हैं और ताली देते हैं! मुहल्ले का कोई नीच, दुराचारी, शराबी, वैश्यागामी और कुत्ते के समान कुतृत्व का धनी व्यक्ति यदि मर जाए और लोग उसके यहाँ सांत्वना देने जाएं तो उसकी प्रशंसा में कसीदे पढ़ते हैं कि भला आदमी था! इनके जाने का दुख है!जबकि मन में यही चल रहा होता है कि उक्त व्यक्ति और पहले क्यों नहीं मर गया! जीवन में ज्यादा समय के लिए तो नहीं महज चौबीस घंटे के लिए ही आप या मैं मक्खनबाजी और बेईमानी का रास्ता छोड़ कर देंखे उस चौबीस घंटे में ही हम ना जाने जीवन भर के लिए कितने झमेले खड़े कर लेंगे! कुल मिलाकर मानव जीवन में व्यवहार, शिष्टाचार,सदाचार में मक्खनबाजी और बेईमानी का पूर्णतः समावेश हो चुका है! अब तो यह लगता है कि कोई व्यक्ति किसी के बहकावे में आकर इमानदारी और सच्चाई की राह पर ना चलने लगे वरना पग-पग पर अनिष्ट होने की आशंका बनी रहेगी! मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मख्खनबाजी और बेईमानी कम्पल्सरी है भाई!
तो फिर मक्खनबाजी और बेईमानी से डर कैसा ?मैं तो कहता हूँ कि शिक्षा नीति और पाठ्यक्रमों में मक्खनबाजी और बेईमानी को शामिल कर दिया जाए! जिससे आगामी पीढ़ी मक्खनबाजी और बेईमानी में पूर्णतः सिद्धहस्त और आत्मनिर्भर हो! समूचे विश्व के लोगों की एक ही धारणा होनी चाहिए कि-
जमकर खाए और जिए चलो
मक्खनबाजी, बेईमानी किए चलो!
— आशीष तिवारी निर्मल