कविता

समर्पण -कविता

घर बार बच्चे देखती
भुल गई अपनी स्वतंत्रता
नहीं याद मुझे क्या जीना
करूँ बस हर पल मंत्रणा।
मेरा नाम और रिश्ता भी
सब के सामने निरर्थक सा
कोई मेरी कीमत नहीं जान
एक सुबिधा हमदर्दी करुणा।
तुमसे सीखे तौर-तरीके,
क्या तुम मेरे सीखोगे।
हर पल मुझसे जीतते आए,
अब और कितना सहना|
अपने छोड़े सपने छोड़े,
तुमको अपना माना है।
हर सपने का समझौता कर,
हाथ तुम्हारा थामा है।
मैं औरत हूं कि सीखें,
देना तुम कब छोड़ोगे।
टूट चुकी हूं अंदर-अंदर,
मन से तुम कब जानना ।
चौका-बर्तन, खाना-पानी,
क्या सब मेरी जिम्मेदारी।
घर के कामों के करने की,
कब लोगे तुम हिस्सेदारी।
सुबह से उठकर रात तलक,
मैं मशीन बन जाती हूं।
बच्चों से बूढ़ों की इच्छा की,
मैं अधीन सी जाती हूँ मानी|
घर के कामों को मेरे,
कर्तव्यों में ढाला जाता।
सारे लोगों की अपेक्षाओं,
को मुझसे ही पाला जाता।
घर-बच्चे-ऑफिस संभालकर,
भूल गई खुद का व्यक्तित्व।
जीवन के इस पड़ाव पर,
ढूंढ रही अपना अस्तित्व।
मैंने अपना सब कुछ छोड़ा,
क्या तुम भी कुछ छोड़ोगे।
टूट चुकी हूं अंदर-अंदर,
मेरा मन कब प्रभु से होना ।

— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]