सिर्फ नाम के पुलिस-मित्र !
जब हम ‘आदर्श थाना’ की कल्पना करते हैं, तो सोचता हूँ… यह ‘आदर्श विद्यालय’ की तरह ही होंगे, लेकिन कभी वहाँ पहुँचने का अवसर मिलता है, तो वहाँ पाता हूँ, ऐसे शख्स को वहाँ पाता हूँ, जो पुलिस पदाधिकारियों से ठठ्ठाकर हँसते हैं, जिसे लेकर कभी अड़ोसी-पड़ौसी कहा करते थे, इससे बचकर रहना…. यह ठग है, यह बिचौलिया है, यह एजेंट है, यह दलाल है…… पड़े रहते इहाँ लोकल नेतानुमा लोगन, रजिस्ट्री ऑफिस के मुंशी …… कभी कोई शिकायत करते हैं, तो ड्यूटी पर बैठे हाकिम कहते– एक जिस्ता सादा कागज और एक पेन खरीद लाओ ! आवेदन तो एक पेज का होता है, फिर इतना डिमांड क्यों ? हर शिकायतकर्त्ता के साथ यही पुनरावृत्ति ! कैसा आदर्श थाना है, रिसीविंग तक देते नहीं हैं । जबकि DGP कार्यालय का कहना है, रिसीविंग तो सभी से लेना है।
राजनीतिक पार्टियों के लोगन सब भी परैल रहेत है यहाँ ! इन बिचौलियों के बच्चे-बच्चियों की शादी भी खूब धूम-धड़ाके से होती है और कुछ वर्षों के बाद ही वैसी ही धूम-धड़ाके से शादी टूट भी जाती है । ऐसे आदर्श थाने में एक भी विद्वान लोग नहीं मिलेंगे ! हाँ, commission से आये DSP में कुछ सभ्यता तो होती है, किन्तु जब से सपना चौधरी के गाने में IPS ठुमके लगाते देखे गए और स्वयं के फेयरवेल में आकाशी-फायरिंग करते देखा गया, तो लगा, पुलिस तो आखिर पुलिस है ! जिनकी बुद्धिरिक्तता की बरोबर चर्चा होती है। …तो ऐसे में क्यों नहीं, पुलिस भी समाज के मित्र बने ! पुलिस-मित्र !! आदर्श-मित्र !!