वो सबके आँगन में है
राम रमा कण-कण में है.
सुमिरो वो सुमिरन में है.
तुलसी जैसी भक्ति करो,
मिलता वो चन्दन में है.
शबरी जैसी चाहत हो,
आ जाता वो वन में है.
आज न सिर्फ़़ अयोध्या में,
राम सभी के मन में है.
हम घर बैठे लेकिन मन,
लगा भूमि पूजन में है.
आँगन-आँगन दीप जले,
वो सबके आँगन में है.
डॉ कमलेश द्विवेदी