हम जमीन पर रेंगते हैं, विमान में उड़ते नहीं !
जबरिया दुःख होता है, जब हमारे शिक्षकों के स्ट्रीट-नेता ‘सुप्रीम कोर्ट’ में नियोजित शिक्षकों के सम्मानजनक लड़ाई के बहाने चंदे की विस्तृत उगाही करते हैं और पटना व बागडोगरा से सीधे दिल्ली ‘हवाई जहाज’ से उड़ जाते हैं, जबकि जिले और गली के नुक्कड़ शिक्षक-नेताओं का वहाँ जाना कोई जरूरी नहीं है । सभी शिक्षक संघों के चीफ़ व महासचिव व विशिष्ट प्रतिनिधि वहाँ तो है ही ! वैसे भी किसी के यूँ सुप्रीम कोर्ट के परिसर में ही प्रवेश करना निषेध है, जो जाएंगे, उनके लिए ‘पास’ होती है।
हमारी शिक्षिका बहनों द्वारा जब शिक्षक-संघों के Account Number माँगे जाते हैं कि कैशलेस व्यवस्था के तहत चंदे के लिए संघ के A/c में रुपये जमा कर देंगे ! ….तो छद्म शिक्षक-प्रतिनिधि ऐसा नहीं करते हैं और कहते हैं- नकद नहीं देना है, तो मत दीजिये, किन्तु यह मत कहिये संघ फर्जी है ! विदित हो, ऐसे संघों के कोई रजिस्ट्रेशन नं. नहीं होते हैं । कुकुरमुत्ते की भाँति उगे ऐसे शिक्षक संघ और उनके ‘बिचौलिये’ शिक्षक इस फिराक में रहते हैं कि ‘यही मौका है, मत चूको चौहान !’
प्राइमरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक लगभग 3 लाख 70 हजार नियोजित शिक्षक बताए गए हैं । यह सच है, सबने चंदा नहीं दिया है, किन्तु यह भी सच है, नियमित शिक्षकों ने भी चंदा दिया है, जबकि यह उनकी लड़ाई नहीं है, किन्तु उन्हें भी तो इन शिक्षकों के बीच रहना है ! यह दीगर बात है, नियमित शिक्षकों में केवल ‘उपाध्याय जी’ ने चंदा नहीं दिया है, उनका कहना है, मेरा नाक-कान काट लीजिए, किन्तु नियोजितवा के लिए चंदा नहीं देंगे !
मेंरे परिवार में डेढ़ दर्जन शिक्षक हैं, सबने थोड़ा-बहुत अवश्य चंदा दिया है । अगर 70 हजार नियोजित शिक्षक चंदा नहीं भी दिए हों, वहीं कुछ नियमित शिक्षकों ने चंदे दिए ही हैं ! फिर चंदा की राशि उच्चतम 1,000 रुपये है, तो न्यूनतम 100 रुपये ! अगर 3 लाख नियोजित शिक्षक 100 रुपये ही चंदा दिए हों तो 3 करोड़ रुपये होते हैं ! यह 3 करोड़ की राशि ‘केस’ लड़ने के लिए कम है क्या ? मैंने भी LL B का अध्ययन किया है। फिर यहाँ दूसरी और तीसरी बार चंदा माँगने का क्या मतलब ? क्या औचित्य ?
अगर सिर्फ ‘बि. मा. संघ’ ही शरीर खुजलाये, तो अकेले वे केस लड़ सकते हैं ! कहा जाता है, यह संघ धनी संस्था है। ….परंतु तथ्य क्या है, अबतक अंधेरे में हूँ । इतना ही नहीं, चंदे के नाम से कोई प्रामाणिक रसीदें नहीं दी जाती है । अगर इसपर किसी को कुछ भी कहना है, तो सुस्पष्ट करेंगे ! किसी भी डिमांडिंग पैसे का हिसाब नहीं दिए जाना ही ‘भ्रष्टाचार’ है ! जब माननीय न्यायाधीश महोदय यह कहते हैं कि ‘शिक्षक’ राष्ट्रनिर्माता होते हैं, तो अपना ‘वकील’ महोदय के लिए भी यह बात लागू है, वे भी तो किसी न किसी शिक्षक के छात्र रहे ही होंगे ! इन संघों के वकील महोदय क्या इन दुःखयारी राष्ट्रनिर्माताओं के लिए मुक़द्दमें मुफ़्त नहीं लड़ सकते हैं ?