कृष्ण कथा
ओ मुरलीधर मोहन प्यारे,
आ रे आ तू दिल के द्वारे।
ये जग तो है तेरा निर्मित,
तू ही है बस पालनहारे।
ओ मुरलीधर मोहन प्यारे,
आ रे आ तू दिल के द्वारे।
भद्र माह का अष्टमी आया,
रोहणी नक्षत्र पक्ष कृष्णा आया।
देवकी वाशुदेव जब सब थे हारे,
अष्टम पुत्र प्रभु तुम अवतारे।
सब थे मद में होश कँहा रे,
माँ का भय और कष्ट निवारे।
ओ मुरलीधर मोहन प्यारे,
आ रे आ तू दिल के द्वारे।
मुक्त वाशुदेव की खुली जंजीरे,
सर पर पुत्र रख गोकुल को दौरे।
अभी तो संकट टला नहीं है,
बढ़ता जल स्तर थमा नहीं है।
चल रहा संघर्स विराम न दिखता,
कृष्णा का आलिंगन यमुना का तृष्णा।
ओ मुरलीधर मोहन प्यारे,
आ रे आ तू दिल के द्वारे।
गोकुल को सौंप अमानत जग की,
ले कर चल दिए कन्या नन्द की।
विद्धवंश निकट जब कंस ने देखा,
स्तनपान कराने पूतना को भेजा।
युक्ति विफल जब कंस का होता,
तब नन्दलाल हर्षित हो उठता।
गाय चराना माखन चुराना,
यह सब तेरी लीला थी कान्हा।
ओ मुरलीधर मोहन प्यारे,
आ रे आ तू दिल के द्वारे।
यमुना के तट पे रास रचाए,
साँझ सवेरे गोपियों को सताए।
मुरली से जिसके प्रेम ही बरखे,
वो कान्हा क्यों राधे को तरसे।
प्रेम मिलान का भोग नहीं है,
प्रेम ह्रदय का दान सही है।
ओ मुरलीधर मोहन प्यारे,
आ रे आ तू दिल के द्वारे।
— रवि नारायण