खो गए वो दिन
खो गए वो दिन
कहाँ से कहाँ आ गए हम,
खुद ही खो गए वो दिन
कहाँ से कहाँ आ गए हम,
खुद ही अपनों को खो दिया,
वो दिन खो गए कहीं जब,
हमारी दुनिया परिवार होते,
दोस्त होते थे सब कुछ हमारे,
खो गए वो दिन आधुनिकता में,
पड़ोसी पड़ोसी करीबी होते थे,
जान से भी प्यारे थे वो कभी,
आज कौन है पड़ोस में हमारे,
ध्यान नहीं किसी को भी,
तेरा मेरा होता नही था उस समय,
जब बच्चे संग संग खेलते थे ,
आज कहाँ गए वो दिन प्यारे,
खो गए वो दिन सुहाने से ,
रिश्ते सभी खो गए है देखो,
स्वार्थ पसर गया सब जगह ।
डॉ सारिका औदिच्य