बहुचिन्तक मित्र
पंजाब के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक उच्च पद पर कार्यरत श्री सदानंद चौधरी; जो हिंदी और अंग्रेजी के अच्छे विश्लेषक हैं- के हाथों पुस्तकद्वय– 1. पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद (शोध), 2. लव इन डार्विन (नाट्य पटकथा)….
मेरे अनन्य मित्र श्री चौधरी जी इनसे पहले महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) में कार्यरत थे…. वे गंभीर चिंतक हैं और पुस्तकालय विज्ञान में उनकी गहरी रुचि है।
मित्र के प्रति एक कविता सादर प्रस्तुत है-
‘जीवन-विचरण में
अवश्यंभावी कारक लिए
आप चिर संचय के मानिंद
नित्य नूतन रचनाएँ करते रहें
और रहें ताउम्र सदा आनंद !’
और उनके कार्यों को नई दिशा देने के लिए अलग अंदाज में–
‘जनता घर पर पसीने से लथपथ,
डरे राजा-चाटुकार, सूनी राजपथ !
बगूले और आदमी की खोज एक है,
मछलियों को दगा देती
उनकी ही विवेक है !’
आदरणीय मित्र के प्रति हृदयश: आभार..