बूढ़ी अम्मा भी फिर आज चलने लगी है
गांव की गलियां फिर से
चहकने लगी हैं
पुष्प की कलियां फिर से
महकने लगी हैं
बूढ़ा बरगद भी फिर
मुस्कुराने लगा है
देखकर बच्चों को
गुनगुनाने लगा है
डालियां फिर से झूला
झुलाने लगी हैं
पेड़ की चिड़ियां फिर
चहचहाने लगी हैं
कोरोना ने बहुत
चाहे सबको रुलाया
मगर इसने कितनों को
फिर से हंसाया
बूढ़ी अम्मा भी फिर
आज चलने लगी है
देख बच्चों को
फिर से मचलने लगी है
रोशनी आंखों की
फिर से बढ़ सी गई है
अपने बच्चों से मिलकर
संभल सी गई है
आशा के दीप फिर
जगमगाने लगे हैं
मिलकर अपनों से सब
मुस्कुराने लगे हैं
गांव की अब महत्ता
समझने लगे हैं
आधुनिकता से अब सब
निकलने लगे हैं
गांव में भी हैं अवसर
बहुत आजकल
जीवनयापन के रस्ते
अब खुलने लगे हैं..।।
खुलने लगे हैं..।।
— विजय कनौजिया