कहानी

कहानी – पहला प्यार

रमेश फेसबुक देख रहा था तो किसी के अकाउंट यानी टाइमलाइन पर यह शेर पढ़ा -” समुद्र के किनारे आबादी नहीं होती जिससे प्यार हो उससे शादी नहीं होती ।”बार-बार ये पंक्तियां उसके जहन में दस्तक देने लगीं तो पूरा शेर याद सा हो गया  । और सोचने के लिए विवश करने लगा । सागर किनारे आबादी नहीं होती , मन सीधा सागर के किनारे पहुंच गया । उठती गिरती समुद्र की लहरों को निहारने लगा । मन ने कहा शायद किसी ने ठीक ही कहा होगा । उफनते समुद्र के पास कौन बसने की सोच सकता है । न जाने कब तूफान आ जाए और बसे बसाए  घरौंदे लहरों के भीतर समा जाएं ।इसलिए शायद उजड़ने के डर ने ही समुद्र के पास आदमी को बसने की इजाजत न दी हो । धीरे से रमेश के मन ने हामी भरते हुए लंबी सास ली । दूसरी पंक्तियों पर जब मन  ने दस्तक दी – जिससे प्यार हो उससे शादी नहीं होती । तो मन ने भीतर ही भीतर कई बार इस मिसरे को बुदबुदाया ।
                       मन भी कितना खूबसूरत पंछी है न जाने कहां-कहां होकर वापस तन के पिंजरे में आ जाता है । शायद यक्ष ने युधिष्ठिर से मन की इसी तीव्रता के कारण ही पूछा हो हवा से तेज चलने वाला क्या है  ? और युधिष्ठिर ने मन के पक्ष में कहा था कि मन वायु से भी तेज चलता है  । अतः मन न जाने कितने ही मीलों की यात्रा हो पलक  झपकते कर आता है । यद्यपि भोगे हुए अतीत को भी पलक झपकते रेशा रेशा उधेड़ कर सामने तस्वीरें मानस पटल पर उतार देता है ।
 इन पंक्तियों को मनन में  उड़ेलते उड़ेलते न जाने कब रमेश का मन बरसों पीछे की यात्रा पर मन निकल गया ।
बात उन दिनों की है जब वह एक दूरदराज के गांव में बतौर पटवारी नियुक्त हुआ था । उस समय शायद उम्र भी बहुत छोटी थी । 22-23 वर्ष की । बचपना सा था । हर एक हरकत में ।कभी कभी याद ही नहीं रहता था कि वह एक जिम्मेदार व्यक्ति है  ।बचपना भी क्या खूबसूरत शय होती है । नई ऊर्जा नया जोश और ऊंची ऊंची उड़ानों के सपनों में खोया हुआ । कभी-कभी तो यह पंखों की पुख्तगी भी भूल जाता है कि ऊंची उड़ान  और  पंखों में साम्य है भी या कि नहीं । फिर भी मन तो बच्चा है । आगोश में पूरी कायनात को ले लेना चाहता है ।
 सुबह उठते ही सामने का धवल शिखर आंखों में सुकून भर देता ।सामने के घर में एक हमउम्र लड़की से भी गाहे-बगाहे आंखें मिल जाती फिर तो मन कभी धवल शिखर पर विचरता तो कभी उस रूपसी नवयौवना के धवल तन की कल्पना में खो जाता । कभी-कभी रास्ते में आते जाते  मुलाकात हो जाती ।  दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते और अपने अपने रास्ते आगे बढ़ जाते । परंतु मुस्कुराहट के पीछे छुपा प्रेम आंखों के रास्ते जो छलक आता उससे तन मन देर तक भीगा भीगा महका महका रहता । सुबह शाम वे दोनों एक दूसरे को चुपके चुपके देखते । क्योंकि घर कुछ दूरी पर होने के कारण दोनों के कमरों की खिड़कियां एक दूसरे की और खुलती थी । देर रात तक कमरों में जली रोशनी एक दूसरे के जागने की गवाही देती । जवानी की दहलीज पर खड़े दोनों युवा न जाने क्या क्या सपने बुनते रहते और इसी उधेड़बुन में कब नींद अपनी गोद में सुला देती पता ही नहीं चलता । सुबह जागते तो फिर वही कशिश , वही आकर्षण मुस्कुराहट आर पार गुजरती रहती ।पता ही नहीं चला धीरे धीरे यह मुस्कुराहट नजदीक आती गई । और फिर शुरू हुआ प्यार में दोनों के तड़पने का सिलसिला ।
अब एक दूसरे को देखे बिना जीना मुश्किल होने लगा । अब दिल है कि मानता नहीं की स्थिति आ गई थी । पहाड़ों में अक्सर हर एक गांव में देवी देवताओं के मंदिर हैं और हर एक मंदिर में देवी देवताओं की पूजा के लिए अक्सर जातरें व मेले लगा करते हैं । उस गांव के देव मंदिर के प्रांगण में  मेला लगा था  ।थोड़ी सी दुकानें सजी थीं । कहीं पकोड़े तो कहीं जलेबी या और कहीं चने की परातें सजी थीं ।लकड़ी के हिंडोले अपनी चूं चूं की आवाज तथा उसमें बैठे लोगों की किलकारियों से वातावरण में मादकता भर रहे थे । औरतें चूड़ियों की दुकानों पर चूड़ियां खरीद रही थीं । तभी रमेश की नजर रेशमा पर पड़ी । वह भी चूड़ियां खरीद रही थी ।चूड़ियां खरीद कर वह पीछे मुड़ी तो पीछे रमेश खड़ा था ।दोनों की नजरें मिली तो दोनों ठिठक गए दोनों के चेहरे खुशी से खिल उठे । उसने चुपके से रेशमा के हाथ में सौ का नोट थमा दिया ।वह लेना नहीं जा रही थी । फिर भी रमेश के आग्रह को ठुकरा न सकी और उसने यह नोट अपने पर्स में डाल लिया । थोड़ी देर तक दोनों लोगों की नजरों से बचते हुए मेले में चहलकदमी करते रहे । फिर रेशमा अपनी सहेलियों के संग हो ली ।और रमेश अपने कमरे की ओर चला आया ।
 मेले शायद लोगों ने मेल मिलाप के लिए ही मेले ईजाद कर रखे हैं ।दूर-दूर से मित्रों के मिलन का पर्व ही तो मेला है । रमेश मन ही मन बुदबुदाता रहा ।  कितनी खूबसूरत है रेशमा । चांदी जैसे उसके बदन पर ईश्वर ने निचोड़ दी हो ।लंबे लंबे काले बाल गोरा चिट्टा बदन और चाल जैसे कोई नदी बलखाती अपनी मस्ती में बह रही हो । जब तक नींद नहीं आई वह तब तक उसकी याद में खोया रहा । खूबसूरती भी कितनी सुंदर शय है । शराब और खूबसूरती दोनों का नशा आदमी को बहका देता है ।आदमी की सुधबुध चुरा लेता है । इस रेशमा की खूबसूरती का नशा रमेश के सिर चढ़कर बोलने लगा था । इतनी खूबसूरत माशूका पाकर  वह स्वयं को दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति समझने लगा था । परंतु कई बार आदमी कुछ भी कर ले उसकी उड़ान को कितना आसमान देना है शायद यह विधि के हाथ में है । रमेश के साथ भी यही तो होने जा रहा था जिसकी उसे भनक तक न थी । दूसरे दिन दोपहर में उसे घर से टेलीग्राम आ गई । उस जमाने में आज की तरह मोबाइल या फोन नहीं हुआ करते थे । जल्दी संदेश पहुंचाने का यही एक साधन था ।उसे जल्दी से जल्दी घर पहुंचना था । किसी अनहोनी की आशंका से उसका दिल आपे में न था । घर निकलते समय वह रेशमा से मिला  तो रेशमा ने अपने प्यार का वास्ता देते हुए कहा  कि मेरे घरवाले मेरा रिश्ता करवा रहे हैं और मैं आपके बगैर जी नहीं पाऊंगी । आप क्या मुझे अपनी बना लोगे ? रमेश ने उसे आश्वासन देते हुए वायदा किया और घर आ गया । घर में पिताजी बीमार थे । अस्पतालों के चक्कर लगाते लगाते कब साल बीत गया , पता ही नहीं चला । खैर पिताजी ठीक तो हो गए यह एक सुकून देने वाली बात थी । उसने एक साल विदाउट पे छुट्टी लेकर नौकरी तो बचा ली पर अपना प्यार नहीं बचा पाया । जब वह वापस आया तो उसे पता चला कि रेशमा की शादी हो चुकी है । एक महीना हो गया है ।अब वह अपने ससुराल चली गई है । रेशमा की शादी की खबर सुनकर उसे इतना आघात लगा कि उसकी आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई । वह कमरे में आकर खूब रोया । उसे लगा जैसे उसके पंख काट दिए हों । उसकी हालत बिना पंखों के फड़फड़ाते परिंदे की तरह थी । उसकी सबसे प्यारी चीज जैसे किसी ने छीन ली थी और वह उस बच्चे की तरह रो रहा था मानो उसके खिलौने कोई दूसरा बच्चा उठाकर ले भागा हो ।
वह बार-बार सामने घर में रेशमा के कमरे की ओर ताकता ।अब वहां लाइट नहीं जल रही थी । रात को उस कमरे में सोने वाले ने जल्दी ही बत्ती बुझा दी थी । खैर जैसे-तैसे उसने खुद को संभाला । लोगों के सामने तो वह इस दर्द का बखान भी नहीं कर सकता था । रेशमा पर उसका क्या अधिकार था ? प्यार का ही तो रिश्ता था  । जिसके गवाह वे दोनों ही तो थे ।अब रमेश का वहां रहना मुश्किल हो गया । रेशमा उसके जहन में इस तरह बस गई थी मानो उसकी धड़कनों की मालिक ही रेशमा हो । चहकता हुआ युवा रमेश अब उदास रहने लगा था । उसके दोस्त उसके चेहरे की उदासी को पढ़ने लग पड़े थे और अपने अपने हिसाब से कयास लगा रहे थे ।
कुछ दिनों के बाद रेशमा अपने मायके आई । रमेश ने देखा उस रात काफी देर तक उस कमरे में बत्ती जलती रही । इस बार फिर जलती हुई बत्तियों ने दोनों के प्यार की गवाही दी ।रेशमा को सुबह ही वापस अपने ससुराल चले जाना था । सुबह हुई तो वह समय निकालकर उसके पास पहुंच गई ।उसने हाथ में वही सौ का नोट पकड़ रखा था ।कमरे में पहुंचते ही दोनों ने एक दूसरे को देखा आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा । हाथ में पकड़ा नोट रेशमा के आंसुओं से गीला हो गया था । रमेश ने जेब से रुमाल निकाला और अपने और रेशमा के आंसू पोंछे । रेशमा ने भीगी पलकों से गिला नोट रमेश के हाथ में रख दिया । और बोली -‘अपनी अमानत वापस रख लो ‘। अब रमेश कुछ नहीं बोल पाया और फफक कर रो पड़ा । उसने नोट वापस रेशमा की हथेलियों पर रख दिया और बोला-‘मेरी ओर से इसे शगुन की निशानी समझ कर रख लो ‘।
           रेशमा के पास देने के लिए शायद कुछ नहीं था। वह अपनी चुनरी भीगी पलकों से आंसू पोंछ कर चलने लगी और बोली – आपका बहुत इंतजार किया पर शायद आप मेरी किस्मत में नहीं थे ।  घरवालों ने न चाहते हुए भी मेरी शादी कर दी । रमेश फिर फफक कर रो पड़ा ।और कुछ नहीं बोल पाया । रेशमा ने अपनी चुनरी से उसके आंसू पोंछे और गले लगकर भीगी पलकें लेकर लोगों की नजर से बचती बचाती वापस अपने घर चली आई , और फिर ससुराल चली गई ।रमेश का भी कुछ दिनों बाद तबादला हो गया । और वह शहर आ गया । पहले प्यार के हस्ताक्षर दिल की किताब पर इस तरह दर्ज हो गए थे कि बरसों बीत जाने के बाद भी उन पर वक्त की धूल नहीं जम पाई थी । रेशमा और उसकी भीगी चुनरी उसके दिल के कोने में ज्यों की त्यों सुरक्षित पड़ी थी ।
आज पहले प्यार के जख्म एक बार फिर हरे हो गए थे । अब तक कंप्यूटर के सामने बैठे काफी देर हो गई थी ।आज एक बार फिर उसका मन रेशमा के कंधों पर सिर रखकर रोने को कर रहा था । वह चाह रहा था रेशमा अपनी चुनरी से एक बार फिर उसके आंसू पोंछ देती जिन्हें वह अंदर ही अंदर बरसों से पिए जा रहा था । उसने देखा शाम के पांच बज गए थे । वह बाहर पटवार खाने के आंगन से दूर पहाड़ों की ओर निहारने लगा । पहाड़ों से लिपटी सिंदूरी धूप ऐसे लग रही थी मानो रेशमा की चुनरी पहाड़ों की चोटियों पर अपनी आभा बिखेर रही हो । उसने एक लंबी गहरी सांस ली और एक बार फिर उसने मुस्कुराने का नाटक किया । उसके चेहरे पर आई उदासी को कोई भी पढ़ सकता था । आज फिर उसने रेशमा को अपनी धड़कनों में महसूस किया । उसे लगा रेशमा उसके  आसपास ही तो है दिल की तहों के भीतर जिसे उसके सिवाय कोई और नहीं देख सकता ।।
— अशोक दर्द

अशोक दर्द

जन्म –तिथि - 23- 04 – 1966 माता- श्रीमती रोशनी पिता --- श्री भगत राम पत्नी –श्रीमती आशा [गृहिणी ] संतान -- पुत्री डा. शबनम ठाकुर ,पुत्र इंजि. शुभम ठाकुर शिक्षा – शास्त्री , प्रभाकर ,जे बी टी ,एम ए [हिंदी ] बी एड भाषा ज्ञान --- हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत व्यवसाय – राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिंदी अध्यापक जन्म-स्थान-गावं घट्ट (टप्पर) डा. शेरपुर ,तहसील डलहौज़ी जिला चम्बा (हि.प्र ] लेखन विधाएं –कविता , कहानी , व लघुकथा प्रकाशित कृतियाँ – अंजुरी भर शब्द [कविता संग्रह ] व लगभग बीस राष्ट्रिय काव्य संग्रहों में कविता लेखन | सम्पादन --- मेरे पहाड़ में [कविता संग्रह ] विद्यालय की पत्रिका बुरांस में सम्पादन सहयोग | प्रसारण ----दूरदर्शन शिमला व आकाशवाणी शिमला व धर्मशाला से रचना प्रसारण | सम्मान----- हिमाचल प्रदेश राज्य पत्रकार महासंघ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए पुरस्कृत , हिमाचल प्रदेश सिमौर कला संगम द्वारा लोक साहित्य के लिए आचार्य विशिष्ठ पुरस्कार २०१४ , सामाजिक आक्रोश द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में देशभक्ति लघुकथा को द्वितीय पुरस्कार | इनके आलावा कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित | अन्य ---इरावती साहित्य एवं कला मंच बनीखेत का अध्यक्ष [मंच के द्वारा कई अन्तर्राज्यीय सम्मेलनों का आयोजन | सम्प्रति पता –अशोक ‘दर्द’ प्रवास कुटीर,गावं व डाकघर-बनीखेत तह. डलहौज़ी जि. चम्बा स्थायी पता ----गाँव घट्ट डाकघर बनीखेत जिला चंबा [हिमाचल प्रदेश ] मो .09418248262 , ई मेल --- [email protected]