हमारे पसीने से बू आती है तुम्हें !
“यह कानून बना दी जाय-
जो आजीवन
या 60 की आयु तक
कुँवारे रहेंगे,
वे ही चुनाव लड़ पाएंगे !
तब देखिएगा,
कोई भी नेता
बनना नहीं चाहेंगे !”
तभी तो–
“भारत सरकार
आगामी 10 साल के लिए
हरतरह की
शादी-विवाह पर
रोक लगा दे,
जनसंख्या
अपने-आप
नियंत्रित हो जाएगी !”
अब एक कुछ गहनतम विन्यास लिए क्षणिका की ओर लौटते हैं, यथा-
“मैं छोटा आदमी हूँ,
छोटा-सा
टूटा-फूटा घर है मेरा !
उनके यहाँ
मेरे लिए
कप अलग होते हैं,
फिर भी वे कहेंगे,
दिल विशाल है मेरा !”
बिहार के शिक्षकों में वर्णात्मक अवस्था तो देखिए-
“शिक्षकों के वर्ण
नियमित शिक्षक
माने ब्राह्मण,
शिक्षक नेता
माने क्षत्रिय,
कोचिंगवाले शिक्षक
माने वैश्य,
नियोजित शिक्षक
माने शूद्र?”
और भी एक बात निकल आती है, यथा-
“जब सबकोई हो गए
आरक्षणवाले,
तो क्यों है कोई
जाति के झुनझुनपाले ?
कोई न सवर्ण, न अवर्ण !
जाति एक कुप्रथा है,
सुन रहे हो प्यारेलाल !”
पहली पुण्यतिथि पर अवर्ण-कवि मलखान सिंह को सादर श्रद्धांजलि !
स्व. मलखान सिंह की चर्चित कविता ‘सुनो ब्राह्मण’ पढ़कर उन्हें सुनाइये तो ज़रा-
“सुनो ब्राह्मण !
हमारे पसीने से
बू आती है, तुम्हें।
तुम, हमारे साथ आओ
चमड़ा पकाएंगे
दोनों मिल-बैठकर।
शाम को थककर
पसर जाओ धरती पर
सूँघो खुद को
बेटों को, बेटियों को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को
बलवती होती है जो
देह की गंध से !”