प्रेम और प्रेम तथा प्रेम एवं प्रेम
“शशि मंडल सिंह सिन्हा श्रीवास्तव पुरी वर्मा शर्मा खान”।
मूल नाम ‘शशि’ ही है, पिता के उपनाम ‘मंडल’ है, माँ के उपनाम ‘सिंह’ है, सिन्हा तो नाना थे, श्रीवास्तव नानी थी, प्रथम पति पुरी जी, दूसरे पति वर्मा जी, तीसरे पति शर्मा जी और चौथे व वर्त्तमान पति खान साहब है।
‘शशि’ महिला है न, इसलिए उन्हें सभी उपनाम ढोने पड़ते हैं !
यह दीगर बात है कि-
“प्रेम तो आख़िर प्रेम होता है,
चाहे इकतरफ़ा हो, दुतरफा हो;
या पति-पत्नी या वो वाला,
या साहब, बीवी या गुलाम वाला !”
अब इन चीजों से निकलते हुए हम अब बौद्धिकता में आते हैं–
अंग्रेजी भाषा और साहित्य में स्नातकोत्तर; प्रकृति व पुस्तक -प्रेमी; आंतरिक और बाह्य सौंदर्यता की वाहिका, जिनमें सरस्वती और वीनस साथ-साथ दिखेंगी !
….तो अपनी बात साफ़गोई से रखनेवाली व बच्चों के बीच लोकप्रिय; शिक्षा को पैशन की तरह लेनेवाली; पर्यटन और फैशनेबल परिधान में रुचि रखनेवाली अंग्रेजी की शिक्षिका सुश्री शीतल चंद्रा के हाथों पुस्तकद्वय ‘पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद’ और ‘लव इन डार्विन’….
शिष्य भी एक उम्र में आकर गुरु की बराबरी कर मित्र हो जाते हैं और मित्रता में क्या लघुता, क्या गुरुता ? हृदयश: आभार शीतल जी ! अगर समय मिले, तो आपके पास इन दोनों के लिए अनुवाद का अवसर है !