सपने के मर जाने से
कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है
यह चंद लाइन हैं
नीरज जी की कविता की
जिससे प्रेरित हो
लिखी मैंने यह कविता है
क्या साहस मरे सपनों का
जो मार सके जीवन को
जीवन है फौलाद बना
कितने सावन कितने भादों
को इसने देखा है
कितनी काली स्याह रातों को
इसने जग कर झेला है
तप तप कर कर यह
लौह बना
घड़ा नहीं यह कच्ची माटी का
जो पानी की बौछारों से
गल कर मिट्टी में मिल जाएगा
गर एक सपना टूट गया
तो क्या
हर बार नया इक सपना यह देखेगा
एक सपने के मर जाने से
जीवन नहीं मर जाता है
एक सपना जो मर भी गया
तो क्या
कल नया सपना फिर जागेगा
*ब्रजेश*