दोहे – झूठ
दुनिया सारी झूठ है ,झूठ सारा जहान,
झूठ को सत्य मान ले,इसमें तेरी शान।
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सच का इक दीपक जला,झूठ हुआ बेहाल,
पर झूठ की आंधी ने,तोडा सच का जाल।
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श्वेत झूठ इतना सबल,आए कभी न आँच.
आज झूठ है जगत में,सबसे ताजा साँच।
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शतरंजी ये जिन्दगी ,इसके चाल अजीब,
चाल चलें जब सत्य की,पाते झूठ करीब।
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जीवन के हर मोड़ पर,करता झूठ कमाल ,
हर मुश्किल की घड़ी में,तोड़े सच का जाल।
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खोज खोज के थक गए,मिटती नहीं थकान,
झूठ नगर में खोजते ,सच का बड़ा मकान।
— महेंद्र कुमार वर्मा