पौराणिक ग्रंथ और इतिहास में योगेश्वर श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण के ऐतिहासिक स्रोत हैं । पांडवों की माता कुंती और वसुदेव – दोनों सगे भाई-बहन थे, जरासंध के जामाता कंश की बहन (या सौतेली!) देवकी जहाँ वसुदेव की दूसरी पत्नी थी , कृष्ण देवकी का पुत्र था । वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी थी । रोहिणी जहाँ यशोदा की सहेली थी , एतदर्थ वसुदेव और नन्द मित्र हुए । रोहिणी के पुत्र बलराम थे, पुत्री सुभद्रा थी । सुभद्रा जहाँ कृष्ण के सखा-भक्त और उनके फुफेरे भाई अर्जुन की पत्नी थी । बलराम कृष्ण से बड़े थे, सौतेले भाई थे । नन्द की पत्नी यशोदा जहाँ कृष्ण की पाल्या माता थी। नन्द – यशोदा जाति से ग्वाले थे, चूँकि कृष्ण के जन्म से बाल्यावस्था तक उनका परवरिश नन्द – यशोदा ही किये थे , इसलिए कृष्ण को ग्वाला कहा जाता है, किन्तु वे वस्तुत: ग्वाले नहीं थे । वसुदेव के पुत्र होने के नाते और अपत्ययवाची संज्ञार्थ कृष्ण को वासुदेव भी कहा जाता है । वसुदेव यदुवंशीय क्षत्रिय थे, शब्द ‘यदु’ से अपत्ययवाची संज्ञार्थ ‘यादव’ शब्द बनता है । इसप्रकार से ग्वाला और यादव के बीच न कोई तारतम्य है, न ही कोई सामंजस्य । निष्कर्षत: कृष्ण यादव क्षत्रिय वंश से थे, किन्तु वे पशुपालक ग्वाले नहीं थे ! मूलत:, कृष्ण की आठ पत्नियाँ थीं, जिनमें रुक्मिणी, सत्यभामा, मित्रबिंदा प्रमुख हैं । फिर तो 16,108 में 16,100 महिला-मित्र थीं । इन 16,100 के साथ कृष्ण के ‘प्लेटोनिक-अफ़ेयर’ थे, पुराण भी इसे रासलीला कहते हैं, सम्भोग-लीला नहीं । यही कारण है, कृष्ण को ‘योगेश्वर’ कहा जाता है । परंतु कृष्ण के प्रेम में मतवाली ये गोपियाँ उद्धव से कृष्ण से संसर्ग को दैहिक रूप में परिभाषित करती हैं । कृष्ण का हिंदी अर्थ ‘काला’ (Black) होता है, परंतु आज ‘एक’ भी लड़की अपने प्रेमी या पति को काले रंग की सपने में भी देखना नहीं चाहती है । फिर यह युवतियों की कैसी कृष्ण-प्रेम है ! हाँ, लड़के भी तो मिल्की-वाइट लड़कियाँ ही पसंद करते हैं । कृष्ण का एक अन्य हिंदी अर्थ ‘छद्म’ भी से है । इसी कुटलता ही तो अर्जुन को नंबर-1 कृष्ण-भक्त बनाये रखा । जहाँ कृष्ण-भक्त सुधन्वा को अर्जुन के हाथों ही मरना पड़ा । कृष्ण का कृष्ण पक्ष को न देखकर हमें किसी की अच्छाइयों की कद्र अवश्य करनी चाहिए । ‘गीता’ में परिणाम की प्रतीक्षा के कर्म करते रहने का उपदेश आज के परिप्रेक्ष्य जँचता नहीं है, क्योंकि प्रतियोगितात्मक परीक्षा में परिणाम कर्म के आधार पर तय नहीं होते है, यह परिणाम तो रिश्वत और पैरवी तय करते हैं ! तब गीता- उपदेश फख़त मन्त्र-जाप बना रह जाता है।