लघुकथा
एक छोटी सी घटना जो दिल को झिंझोड़ कर रख दे और बहुत समय तक याद रहे ,उस पर लिखी लघुकथा कालजयी बन जाती है। कुछ लघुकथाएं बहुत लम्बी होकर अपने लघुकथा का दर्जा खो बैठती हैं। लघुकथा मानव मन के अनगिन रंगों को उजागर करता है।
वास्तव में पूर्ण कथा होती है लघु कथा। इनका स्वरुप छोटा होता है अतः अनावश्यक शब्दों की गुंजाइश कम रहती है। यदि लघुकथा के अंत में कुछ उलटफेर हो जाए तो पाठक अचंभित हो उठता है।
लघुकथा को शब्द सीमा में बाँध कर रख पाता है कुशल लघुकथाकार। कई बार दो तीन लाइन में ख़त्म हो जाती प्रभाव दिखाती लघुकथा।लघुकथा में पूर्णता होना अति आवश्यक है। कुछ लघुकथाएं अधूरी अधूरी सी लगती हैं। लघुकथाएं हमारे आस पास बिखरी हैं ,जरुरत हैं उन्हें आप कितना महसूस कर पाते हो।
लघुकथा की शुरुआत धमाकेदार हो तो क्या कहने और यदि बोझिल हो तो पाठक पढ़ ही नहीं पाता।लघुकथा धाराप्रवाह होनी चाहिए ,जैसे नदी बिना रुके सतत बहती चली जाती। लघुकथा में कसाव होना चाहिए ,उसके अनावश्यक शब्दों को क़तर देना चाहिए। प्रकृति के खूबसूरती के चित्रण की गुंजाइश लघुकथा में कम ही होती है।
जब लघुकथा में मानव मन ,समाज की विसंगतियों पर प्रहार किया जाता है तो व्यंग्य लघुकथा उदित होती है। जब कथा में सहज हास्य डालकर प्रस्तुत किया जाता है तो लघु हास्य कथा निर्मित होती है। इसी तरह ,करुण ,वीभत्स ,वात्सल्य,श्रृंगार रस से अद्भुत लघुकथा रची जाती हैं।
लघुकथा कई रूपों में लिखी जाती है। कई बार यात्रा वृतांत के साथ लघुकथा विचरित करती है। कभी कभी वार्तालाप के साथ साथ लघुकथा भी चलती जाती है। लघुकथा देखने में छोटी जरूर लगती हैं मगर मन में गहरा असर कर जाती है। लघुकथा का क्षेत्र एक ही थीम पर केंद्रित होता है ,उसे विस्तार देने पर कभी कभी तो वह लम्बी कहानी या उपन्यास में ढल जाती है।
एक छोटी सी लघुकथा —
हरित क्रांति
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एक जगह कई हरे भरे पेड़ गिराए जा रहे थे।
पूछा –भाई ये पेड़ क्यों गिराए जा रहे हैं ?
बताया गया –कल यहाँ वन मंत्रीजी हरित क्रांति के अंतर्गत वृक्षारोपण करने वाले हैं।
एक और लघुकथा याद आती है।
आदमी
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”सेठजी पानी पिला दो। ”
”अभी आदमी आएगा तो पानी पिलाएगा।”
”सेठ जी बहुत प्यास लगी है ,थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाओ ना।’
ऐसी ही बहुत सारी लघुकथाएं अवचेतन मन में घूमती रहती हैं।
आजकर अधिकांश पत्र पत्रिकाओं का हिस्सा होती हैं लघुकथाएं। अतः पढ़ते रहिये ,महसूस करते रहिये ,मुस्कुराते रहिये पढ़कर लघुकथा।
— महेंद्र कुमार वर्मा