सामंती-शब्द ‘बाबू’ कहा जाने पर प्रतिबंध लगे
सामंती-शब्द ‘बाबू’कहा जाने पर प्रतिबंध लगे ! आजादी मिले 7 दशक हो गए ! भारतीय लोकतंत्र में सामंती व्यवस्था अब भी कायम है ! हम आपस में एक-दूसरे को जो संबोधित करते हैं और उन संबोधन में प्रेम और अहम का प्रकटीकरण अनायास हो जाता है।
आप हमसे बड़े और सामाजिक रिश्ते से जुड़े हैं, तो दादा होंगे, बड़ेबा व जेठा व बड़ेपा होंगे, चाचा होंगे, भैया होंगे ! अगर उम्र और रिश्ते में छोटे हैं, उसे सदानंद कहेंगे, परमानन्द कहेंगे, आशीष कहेंगे, शानु कहेंगे ! अगर कुछ उन्हें सम्मानित देने का है, तो करण जी, विकास जी, अर्जुन जी इत्यादि कहेंगे, फिर और सम्मान करने की बात आये, तो प्रमोद सर कहेंगे, विनोद सर कहेंगे, प्रसाद सर कहेंगे, किन्तु लाख बुरा आये या आपको ‘गोल्ड मेडल’ मिलने भी जा रहे हों, तो भी किसी को “बाबू” कहा जाने पर रोक लगनी चाहिए, इस शब्द के कहा जाने और सुना जाने से सामंती व्यवस्था की ‘बू’ और इनसे अहम का ‘इंफेक्शन’ फैलता है!
यह कांग्रेसी शब्द है, अनुसूचित जाति के “जगजीवन राम” को ‘बाबू-बाबू’ कहकर इन कांग्रेसियों ने इन्हें ‘प्रधानमंत्री’ बनने नहीं दिया ! कभी-कभी यह शब्द व्यंग्यात्मक और बहलानेवाला हो जाता है ।
बाबू शब्द की उत्पत्ति बा + बू से हुई है। अंग्रेजों को कलर्कों के कपड़ों से बदबू आती थी, उन्होंने बा + बू अनुवाद करवाया बा याने जैसे बा अदब अदब के साथ जो बू के साथ हो याने जिससे बू आती हो उसे अंग्रेजों ने बाबू नाम दिया।
आपकी बात सत्य हो सकती है। पर मैंने कहीं पढ़ा था कि यह बाबू शब्द अंग्रेजी शब्द ‘बैबून’ से निकला है, जो अफ्रीका का एक बन्दर होता है। अंग्रेज अधिकारी अपने कर्मचारियों या नौकरों का मजाक उडाने के लिए उनको ‘बैबूँ’ कहा करते थे, और आगे सम्मानसूचक शब्द ‘जी’ लगा देते थे। कर्मचारी समझता था कि अंग्रेज उनको सम्मानपूर्वक सम्बोधित कर रहा है। यही ‘बैबूँ जी’ आगे चलकर ‘बाबू जी’ बन गया और हर लिपिक को ‘बाबू’ कहा जाने लगा।
‘बाबू’ शब्द का अर्थ और इसकी उत्पत्ति के बारे में कुछ बताइए।