ज़मीं मेरी थी…
ज़मीं मेरी थी, मेरा आसमान थी यारों।
रब का एहसान थी मेरा गुमान थी यारों।।
सांझ की आरती सी खुशनुमां वो मेरे लिए।
उसकी खातिर मैं सुबह की अज़ान थी यारों।।
हर ज़रूरत पे रुपए सिक्के मयस्सर करती।
अम्मा मेरी थी या कोई खदान थी यारों।।
तीखी झिड़की या गालियाँ भी मीठी मीठी लगी।
ऐसा लगता है कि उर्दू ज़ुबान थी यारों।।
मेरे रोने पे कोना कोना दौड़ पड़ता था।
इस कदर ज़ीस्त कभी मेहरबान थी यारों।।
नाव कागज़ की खिलौनों की उम्र क्या बीती।
जवानी सिर से पाँव इम्तिहान थी यारों।।
मुद्दतों बाद याद इस तरह किया है उसे।
वो जो धड़कन की रवानी थी जान थी यारों।।