उपनामों को त्यागने का समय
देश के किसी व्यक्ति के नाम के आगे अगर ‘पंडित’ लिखा है, तो वह व्यक्ति ‘ब्राह्मण’ है, वहीं नाम के बाद में ‘पंडित’ लिखा है, तो वह व्यक्ति बिहारी ‘कुम्हार’ है ।
किसी व्यक्ति के नाम के आगे ‘ठाकुर’ है, तो वह व्यक्ति ‘राजपूत’ है और नाम के बाद ‘ठाकुर’ है तो वह ‘नाई’ हो जाता है।
अगर नाम के आगे ‘चौधरी’ है, तो वह दबंग हैं या ‘ब्राह्मण’ या भूमिहार ब्राह्मण हैं, वहीं नाम के बाद ‘चौधरी’ है, तो वह व्यक्ति बनिया, कलवार या डोम है ।
नाम के बाद ‘रजक’ है, तो धोबी, रजाक (रज्जाक) है तो मुसलमान ।
‘सिंह’ और ‘सिन्हा’ के साथ बड़ी कंफ्यूज़न है! जाति के पता नहीं चलेंगे!
सरदार के साथ ‘सिंह’ है तो ‘सिख’, कुमार या प्रसाद के बाद सिंह है, तो यह मछुआरे, गोढ़ी व निषाद के हैं । तो सिंह के बाद वंश के लिए कोई उपनाम है तो ‘राजपूत’, जैसे- बर्म्मन, चौहान।
ज्ञात हो, ‘बर्मा’ कायस्थ और कुर्मी के उपनाम हैं, तो ‘चौहान’ उपनाम ‘भंगी’ के भी हैं ! ‘बैठा’ है तो दलित हैं, ‘खरे’ है तो सवर्ण हैं । ‘पाल’ है तो गड़ेरिया हैं, ‘पॉल’ हैं तो बंगाली कुम्हार ! कौल है तो कश्मीरी !
‘खां’ हैं तो मुसलमान, ‘खान’ हैं तो ब्राह्मण !
‘सादा’ हैं तो मुशहर, ‘सदा’ हैं तो ब्राह्मण !
‘अंसारी’ हैं तो मोमिन मुसलमान, ‘पंसारी’ हैं तो बनिया हिन्दू !
‘शास्त्री’ लाल बहादुर ‘कायस्थ’ थे, तो ‘शास्त्री’ भोला पासवान ‘दुसाध’ थे!
‘झा’ और ‘ओझा’– दो टाइप के ब्राह्मण हैं !
—फिर हम क्यों न ‘उपनाम’ को त्याग देते हैं और देश के लिए सिर्फ ‘भारतीय’ कहलाने का प्रण लेते हैं!
‘पाॅल’ शब्द ईसाई भी लगाते हैं, केवल बंगाली कुम्हार नहीं।
उपनाम ना होने से भी लोग भेदभाव करने में कसर नहीं छोड़ते। आप बताईये यदि नाम विजय या मोहन हो कोई उपनाम ना भी हो और नाम नसीरुद्दीन या इकबाल हो तो क्या कट्टर लोग बिना उपनाम के भी नाम में भी वो नहीं ढूंढ लेंगें जो वो चाहते हैं ?
पॉल से क्या पता चलता है ?