एक बालक का पैगाम
सरहद के रखवालों सा
मैं सैनिक बनना चाहता हूँ।
घनघोर ताप या शीत हो आतप
बॉर्डर पर जाना चाहता हूँ।
सिले होंठ या चिरा हो सीना
झण्डा फहराना चाहता हूँ।
डटकर दुश्मन का करूँ सामना
मैं कदम बढ़ाना चाहता हूँ।
मरते वक्त हो कफन स्वदेशी
वतन की मिट्टी चाहता हूँ।
वतन के वीर सपूतों को
मैं शीश झुकाना चाहता हूँ।
— आयुषी अग्रवाल