भारतीय स्वत्रंतता संग्राम
इस वर्ष हम सभी अपने देश का 74वाँ स्वत्रंतता दिवस मना रहे है।
सोने की चिड़िया कहा जाने वाला मेरा भारत कितने ही नामों से जाना जाता है।हिंदुस्तान ,हिन्द, आर्यावर्त आदि।
हमारे देश की गौरवशाली गाथा हमनें अपने पूर्वजों से कई बार सुनी है। सुख ,संपन्नता,वैभव, आध्यत्म,संस्कृति सब हमारे देश का प्रितिनिधित्व करती है।
हमारे देश की संस्कृति से प्रभावित होकर कई विदेशी हमारे देश मे आये ।कोई ज्ञान प्राप्त करने, कोई राज करने,कोई व्यवसाय करने। सभी हमारे देश के गौरव को देख दाँतों तले ऊँगलियाँ दबाते थे।
हमारे देश को पराधीन करने की योजना कई वर्षों तक होती रही।
जो भी विदेशी यहाँ आता हमारे देश को पाने की इच्छा रखता।
पहले पारसी हमारे देश मे आये और बस गए,फिर यूनानी ,फिर मुगल आये और उन्होंने कई सालों तक हमारे भारत देश पर राज किया।एक पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा समुन्द्र मार्ग से व्यापार की दृष्टि से हमारे देश मे आया।और अंत मे ब्रिटिश लोग आए ,जिन्होंने 200 वर्ष तक हमारे देश को गुलाम बना कर रखा। हमारे देश ने कई वर्षों
तक गुलामी सही।पर कहीं न कहीं देश के सपूतों ने इस पराधीनता को मन से स्वीकार नहीं किया था।उनके मन मे आक्रोश पनप रहा था।अपनी आजादी के लिए वे प्रयत्नशील थे।
पर सही मायने में अगर स्वत्रंतता संग्राम का प्रारम्भ हुआ तो वह 10 मई सन 1857 में मेरठ में मंगल पांडे के द्वारा हुआ ।
इसका मुख्य कारण था चर्बी वाले कारतूस जो कि गाय और सुअर की चर्बी से बने थे,जिसे मुँह से छीलकर उपयोग में लाना था।
इन सबमें एक ब्राह्मण युवक मंगल पाण्डे ने इस कार्य को करने से मना कर दिया।और यही से भारतीय स्वत्रंतता संग्राम की शुरूआत हुई।
नाना साहब ,महारानी लक्ष्मी बाई,तात्या टोपे ,चन्द्रशेखर आजाद आदि कई वीरों ने आजादी का बिगुल बजा दिया।
लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों की दासता को अंत करने का समय आ चुका था।
कई क्रांतिकारी दल बन गए थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपना बलिदान दिया।बच्चे,बुजुर्ग,महिलाओं सबने इन आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया।
बेगम हजरत महल,चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु आदि वीर सपूतों ने अपना सर्वस्व देश पर अर्पित कर दिया।
अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार से देश का प्रत्येक व्यक्ति जूझ रहा था।
लगान वसूली,कई प्रकार के कर विदेशी वस्तु के उपयोग पर दबाव और न जाने कितने अत्याचारों को हमारे देश वासियों ने सहा।
भारतीयों पर इतने अत्याचार बढ़ गए कि उनका साँस लेना मुशिकल हो गया। सजा के तौर पर काले पानी की सजा,ऐसी अंधेरी कारागृह जिसमें व्यक्ति प्राण छोड़ दे ,ऐसी जगह भारतीयों को बंधक बनाए रखना।
इतनीं यातनाओं के बाद भी हमारे देश के वीर क्रांतिकारियों के अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने का उत्साह कम नहीं हो रहा था।
हमारे देश को आजाद करवाना इतना आसान नहीं था, क्रांति से भी स्वत्रंतता नही मिल पा रही थी।
इसी बीच हमारे देश के कई महान विचारक आगे आये और उन्होंने भी अपना योगदान दिया।गुलामी के अलावा और भी बहुत कुछ था जैसे बाल विवाह, स्त्री शिक्षा ,विधवा विवाह, अश्पृश्यता सती प्रथा,इन सबसे भी हमें मुक्ति दिलाना।
राजा राम मोहन राय,विवेकानंद, दयानंद सरस्वती बंकिमचंद्र चटर्जी आदि कई लोगो ने इस हित मे प्रयास किया।
स्वत्रंतता संग्राम में क्रांतिकारी योजना होने के बाद भी आजादी मिलना मुश्किल हो रहा था।
1886 में भारतीय कॉंग्रेस की स्थापना हुई जिसके बाद कई राजनेतिक दल बनने लगे।
सभी ने अपने अपने स्तर पर देश को आजाद कराने के प्रयत्न किए।
हम यहाँ हमारे देश के क्रांतिकारियों के योगदान को भूल नही सकते।
लेकिन हमें उस समय एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो सबका प्रतिनिधित्व करे और देश की आजादी में अपना योगदान दे।
लाला लाजपत राय,गोपाल कृष्ण गोखले,विपिनचन्द्र पाल, सुभाष चन्द्र बोस आदि अपने अपने स्तर पर प्रयासरत थे।सुभाषचंद्र बोस ने तो आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना भी की।
देश की दशा को सुधारने के लिए गोखले जी ने 1913 में महात्मा गांधी जी को भारत बुलाया ,वे उनके दक्षिण अफ्रीका आंदोलन से काफी प्रभावित हुए। गाँधी जी उनके बुलावे पर भारत लौट आये।
उधर अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था।
और इसका सबसे क्रूर अत्याचार था “13 अप्रेल 1919 “उस दिन बैसाखी का पर्व था ।और उस पर्व को मनाने सभी लोग इकट्ठा हुए थे।जब ये खबर अंग्रेज अधिकारी
जनरल डायर को पता चली तो उसने सैनिकों को उन तमाम बुजुर्ग,महिलाओं, बच्चों पर जलियांवाला बाग में अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।
कुछ लोग अपनी जान बचाने कुएं में कूद पड़े फिर भी सिपाहियों ने कुँए में भी गोली दाग दी।
इस भीषण हत्याकांड ने पूरे देश को आक्रोशित कर दिया।
अब तो आजादी की लहर मानो अपने उफान पर थी ।
लोगो ने विद्रोह करना प्रारंभ कर दिया।
गाँधी जी के सहयोग से देश की आजादी के लिए कई आंदोलन किये गए। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, स्वदेशी अपनाओ, असहयोग आंदोलन, नमक कानून तोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन में ” करो या मरो”का नारा दिया।इस आंदोलन ने देश की सभी जेल को आंदोलन कारियो से भर दिया।
1857 से प्रारंभ हुई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई अब अपने अंतिम चरण पर थी।
देश की आजादी में अपने प्राणों की आहुति देने वाले ऐसे कई वीर सपूतों को हम कभी नही भुला सकते जिनके योगदान के बिना ये आजादी सम्भव नही थी।
अंग्रेजो की हम भारत वासियों में फूट डालने की नीति प्रारम्भ से ही रही ,वे ये भी नही चाहते थे कि भारतीय शिक्षा प्राप्त करें और आगे बढ़े।
उन्होंने हमारे देश के हिंदु-मुस्लिम भाइयों को अलग करने की योजना बनाकर “1913 में बंगाल विभाजन”की घोषणा कर दी।
और इस तरह हमारे भारत के टुकड़े होना प्रारम्भ हो गया।
गाँधी जी के सत्य अहिंसा के मार्ग के पर चलते हुए आखिरकार 1942 में आजादी के लिए आंदोलन को तेज कर दिया।हमारे देश को स्वाधीन कराने का समय लगभग आ चुका था।
सभी के योगदान की वजह से आखिर वह समय आ ही गया जब हमारा देश स्वाधीन हो ही गया।
इतने सालों की मेहनत और कुर्बानी रंग लाई और अब हम अपने आजाद देश की खुली हवा में साँस लेने जा रहे थे।
पर हमें इसका भुगतान देश के 2 टुकड़ों में करके भुगतना पड़ा।
14 अगस्त की 1947 की मध्य रात्रि को आखिर हमारा देश स्वत्रंत हो ही गया 200 वर्षो की दासता से सभी भारत वासियों को छुटकारा मिल ही गया।
भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पंडित जवाहर लाल नेहरू जी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया।
और दूसरी तरफ हमारे ही देश का दूसरा अंश जिसे पाकिस्तान का नाम दिया गया,उसके प्रधानमंत्री के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना को चुना गया।
“इतने वर्षों का संघर्ष आसान नहीं था हर भारतीय का।पर हम उन सभी देश के महान सपूतों को नमन करते है जिन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप इस धरा को स्वंतत्र कराया।
हम उन सभी वीरों के आभारी रहेंगे जिनकी वजह से आज हम सभी एक स्वतंत्र भारत मे चैन की साँस ले रहे है।
— सपना परिहार