कब तक सच्चाई झुठलाएँगे
कब तक झूठे इतिहासों में, सच्चाई झुठलाएँगे,
कब तक अमर शहीद हमारे, आतंकी कहलाएँगे।
माना सत्य – अहिंसा से ही, आजादी हमने पायी,
भारत के बँटवारे का दोषी किसको बतलाएँगे?
सत्य – अहिंसा से डरकर अंग्रेज यहाँ से भागे थे,
झपट लिया काश्मीर पाक ने, ये कैसे समझाएँगे?
तीन रंग से बना तिरंगा, बता रहा है सुनो जरा,
साहस से ही शान्ति और फिर हरियाली कर पाएँगे।
अगर नहीं हम बदल सके अपने फर्जी इतिहासों को,
फिर अगली पीढ़ी को कैसे, मुँह अपना दिखलाएँगे!
एक-दूसरे की आजादी का जब समझेंगे मतलब,
सही मायने में उस दिन आजाद सभी कहलाएँगे।
रामचन्द्र कह गए लखन से, बिन भय प्रेम नहीं होता,
अवध आत्मनिर्भर बनकर ही, विश्वगुरु कहलाएँगे।
— डॉ अवधेश कुमार अवध