आशीर्वाद और पुरस्कार
मेरे अनुजसम आशुतोष जी से गत स्वाधीनता दिवस के सुअवसर पर ‘युगल राष्ट्रध्वज’ का उपहार पाकर दिल गदगद हो गया। सपरिवार सादर आभार, आशुतोष जी ! भाई, हम सब जहाँ हैं, वहाँ गंगा बहती भी है.. आपकी आवाज सचमुच में शानदार है, बिना साज के सुमधुर स्वर.. अपनी गीत बनाइये, लिखिए और इसे इसीतरह गाइये, तो और भी सोने पे सुहागा.. सचमुच में हर व्यक्ति कलाकार होते हैं ! यह आपका दूसरा ऑडिओक्लिप सुना.. अनगिनत बधाई और भविष्यार्थ स्वर्णिम शुभकामनाएँ, भाई !
एक अभिभावक की तरह आनंद ने आगे कहना जारी रखा-
घर बन रही है क्या ? कहीं स्थापित जॉब पा जाइये, यह नहीं चाहते आप ! बिहार फारेस्ट रेंजर की वैकेंसी निकली है, साइंस ग्रेजुएट ही चाहिए ! अर्चना भर रही है, आप भी भर दीजिए ! NET तो आपको निकालने ही होंगे, अन्यथा जिंदगी को कितना हताश और निराश करेंगी ! आप M Sc हैं और अपनी क्षमता को पहचानिए !
आशुतोष को लगा कि उन्हें इस आशीर्वाद के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहिए । जब यही पुरस्कार अनमोल है और बहुमूल्य है, तो NET निकालकर या जॉब पाकर वे क्या करेंगे, ऐसी आशीर्वादों से ही जिंदगी कट जाएगी!