अनुज कृष्णा
मेरी अपनी मौसी देवकी का बड़ा पुत्र कृष्णा जन्मजात मेधावी रहे हैं, उनका बाल्यावस्था मेरी माँ यशोदा के सान्निध्य में भी बीता है । भगवान कृष्ण के बाल्यावस्था कष्ट इस कृष्ण के जवानी-कष्ट से जुड़ा हुआ है । आर्थिक अभावों में पलना , वो भी अगर पड़ौस में धनियों के चास हों- कृष्णा भी मैं या मेरा परिवार धनी क्यों नहीं हैं, मैं और मेरा परिवार ही कष्ट में क्यों हैं ? क्यों हमारे पड़ौसी रोज-रोज दूध- भात या तसमय ही खाते हैं , क्यों मैं और मेरे परिवार के सदस्यों को सूखी रोटी भी मयस्सर नहीं है ? मैट्रिक इन्हीं सपनों में अच्छा श्रेणी से पास किये , ऊँचें सपने को लिए, अपनी दरिद्रता को दूर करने के प्रति कटिबद्धता लिए तथा अपने अंदर पनप रहे इन प्रश्नों के निदानार्थ इंटर में साइंस रखा तथा पिता के माटी – पेशा में सहयोग भी करते रहा । रात-दिन दोनों तरह की मेहनत और आरंभिक प्रतियोगिता परीक्षाओं में ‘अनुतीर्णता’ से इस कृष्ण का मस्तिष्क अस्थिर हो गया । घर में तोड़-फोड़ करने लगा , वशिष्ठ नारायण सिंह की भाँति आपस में बुदबुदाने लगे । लोगों ने कहा- वह पागल हो गया है । दो दर्जन डॉक्टरों के यहाँ इलाज़ करवाया गया, लाखों खर्च हुए । पर अभी भी उनकी हालत 10 वर्षों से जस की तस है । मौसी देवकी को अपने कृष्णा पर अभी भी कोई चमत्कार होने की आशा है । किन्तु क्या उस कृष्ण की ‘गीता’ में इस कृष्णा के सपनों को परिणाम तक पहुंचाने का कोई श्लोक है, तो बताना भैया ।