मां को “बात” करना नहीं आता है
सिखाया होगा किसी वक़्त
उसने “बोलना” मुझको
पर अब लगता ….
उसको बोलना नहीं आता है।
हां! मां को “बात” करना नहीं आता है।।
पुराने किस्से हर वक़्त दोहराती है
इक-इक बात को, दस बार वो सुनाती है
पक जाता हूं सुन कर, वो “बोरिंग” बातें
मेरा “इग्नोर” करना भी, उसको समझ नहीं आता है,
हां! मां को “बात” करना नहीं आता है।।
इक वक़्त था…
जब लगती थी, समझदार बड़ी
दुनिया रहती थी, उसके आगे पीछे खड़ी
पर है बहुत ही “इमोशनल”
“प्रैक्टिकल” होना उसको नहीं आता है।
हां! मां को “बात” करना नहीं आता है।।
अंजु गुप्ता