ग़ज़ल
रोकना अब नहीं यह सफर दोस्तों
अब मिले कोई इक हमसफर दोस्तों |
देख लो जिंदगी के कहर दोस्तों
हर कदम पर मिला है जहर दोस्तों |
ज़ख्म जिसने दिया, खूब नजदीक था
वो इनायत सभी बेअसर दोस्तों |
छोड़कर अब कहाँ जायँ संसार में
आपके ही तो है’ मेरा शहर दोस्तों |
साम या दाम या दंड या भेद हो
अब पहुँचना है’ मुझको शिखर दोस्तों |
भूल भुलैया’ है यह जगह जान लो
अब कोई तो दिखाएं डगर दोस्तों |
ये सियासत लड़ाई चरम पर गई
अब अधिक तो नहीं बेहतर दोस्तों |
कालीपद ‘प्रसाद’