ग़ज़ल
तमाम दीन हँसाने को ईद आई है
इलाह प्रेम सिखाने को ईद आई है |
चमन दिलों का उजड़ता गया सदा यहाँ पर
दिलों का बाग़ सजाने को ईद आई है |
सबाह गर्म हवा और शाम भी तीखी
शबाब आग बुझाने को ईद आई है |
सभी दिलों में भरा नफरतों के बादल
दिलों से’ मेघ उड़ाने को ईद आई है |
समाज में नहीं मेल अब भाई’ भाई में
अमन की’ लावनी’ गाने को ईद आई है |
सभी घरो में’ खड़ी हो गई दिवाल कई
वही दिवाल गिराने को’ ईद आई है |
दिले कुसूर हुआ टूटकर बिखर क्यों’ गया
उन्ही सभी को’ मिलाने को ईद आई है |
कालीपद ‘प्रसाद’