कर्मठ व्यक्तित्व के धनी
अपनी बुआ के यहाँ मैं सूजापुर आया हुआ था, संभवत: बरारी, काढ़ागोला या कुर्सेला में या यहीं कहीं अटल जी के कार्यक्रम के अनाउंसमेंट हो चुका था और मैं तब बौद्धिक बच्चा किसीतरह उनके निकट पहुँच गया, जो कि इस अद्भुत भाषणबाज़ जीव को मैं काफी निकट से देखना चाहता था और हड़बड़ाहट में बगैर प्रणाम-पाती के पूछ बैठा- “दद्दू, आपके नाम ‘अटल’ ही क्यूँ है ?” उस समय सुरक्षागार्ड की क्या स्थितियाँ थीं, अभी भिज्ञ नहीं हो पा रहा हूँ ! खैर, उनके जवाब से सभी संतुष्ट हो गए थे कि “मेरे माँ-बाप ने मेरा नाम ‘अटल’ यूँ ही नहीं रखा है । मेरा मकसद यह है कि मैंने आजतक जो प्रतिज्ञाएँ की हैं, अवश्य वह पूरी होकर रही है ।” जब पहलीबार वाजपेयी जी ने भारत के 11 वें प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ लिया था, तब मैं ‘आमख्याल’ के कुछ अंक-स्तंभों के सम्पादन कर चुका था, जिसे लेकर कालान्तर में ‘लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स’ ने मुझे देश के दूसरे सबसे युवा संपादक होने को लेकर पत्र भेजा था । इसी साप्ताहिक के 30 मई 1996 अंक में उस सन्देश को शामिल करते हुए ‘आमख्याल’ की कवर-स्टोरी “भारत का दूसरा विक्रमादित्य : अटल बिहारी वाजपेयी” के रूप में मेरा आलेख छपा। सत्यश:, श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी आदर्श-स्तम्भ के ध्रुवतारा, ज्ञान के पवित्र-संगम, शुभ्र हिमालय से भावों को समेटे धीर-गंभीर एवम् तेजस्वी वीर पुरुष हैं । इन्हें ‘भारत का दूसरा विक्रमादित्य’ कहा जाय, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी! ऐसे मर्द तो आँधियों में भी दीपक जला लेते हैं । यदि ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी भारत जैसे धर्मदेश के मसीहा न बने, तो कौन बनेंगे ? यह देश का सौभाग्य है कि उनकी संस्कृति की अक्षुण्ण परम्परा की इज़्ज़त रखनेवाले कवि, पत्रकार व साहित्यकार तीन बार प्रधानमन्त्री बने।