लावारिस लाशें कहीं, और कहीं ताबूत
कोरोना काल का सदुपयोग करते हुए वरिष्ठ कवि तथा हिंदी के जाने-माने दोहाकार डॉ रामनिवास मानव ने ‘बदल गए दस्तूर’ शीर्षक दोहा संग्रह तैयार कर दिया है। यह डॉ मानव का चौथा दोहा-संग्रह और उनकी प्रकाशित होने वाली 54वीं पुस्तक है। जो विमोचन के उपरांत शीघ्र ही पाठकों के हाथों में होगी। पुस्तक की विषय वस्तु की जानकारी देते हुए डॉ मानव ने बताया कि कोरोना केंद्रित इस काव्य कृति में कोरोना की विभीषिका, कोरोना के प्रसार में चीन की भूमिका, तालाबंदी की परेशानियां, श्रमिकों के विस्थापन, कोरोना के नाम पर की जा रही राजनीति, व्यापारिक दृष्टिकोण और मरीजों के आर्थिक शोषण, जमातियों के उत्पात, कोरोना वीरों की भूमिका, पारिवारिक मूल्यों की प्रतिष्ठा, पर्यावरण पर पड़े सरकारात्मक प्रभाव आदि विषयों का मार्मिक चित्रण हुआ है।
डॉ मानव ने स्पष्ट किया कि कोरोना के विकराल रूप को देखकर एक दिन अचानक ही एक दोहा लिखा गया जो इस प्रकार था, ‘लावारिस लाशें कहीं, और कहीं ताबूत। भीषण महाविनाश के, बिखरे पड़े सबूत।।’ इसके बाद तो दोहा लेखन का क्रम चल पड़ा तथा लगभग दो सौ दोहे तैयार हो गए तो पुस्तक के प्रकाशन की योजना भी बन गई। संग्रह का शीर्षक डॉ मानव के प्रस्तुत दोहे की अंतिम अर्द्धाली से लिया गया है ‘अपने सब लगने लगे, जो थे दिल से दूर। पल में घर परिवार के, बदल गए दस्तूर।।’ उन्होंने कहा कि कोरोना का यह दौर महाविनाश का साक्षी है और मुझे बड़ा संतोष है कि मैं इसे वाणी देने में सफल रहा हूं- ‘कोविद का प्रकोप कहीं, कहीं युद्ध का शोर। साक्षी बना विनाश का, यह उन्मादी दौर।।’
कोरोना-केंद्रित काव्य कृतियों की जानकारी देते हुए डॉ मानव ने बताया कि अभी तक ओस्लो नार्वे के प्रवासी कवि डॉ सुरेशचंद्र शुक्ल की ‘लॉकडाउन’ और जबलपुर मध्य प्रदेश के आचार्य भागवत दुबे की ‘कोरोना विकराल’ केवल 2 पुस्तकें प्रकाशित होने की सूचना प्राप्त हुई है। इनमें से लॉकडाउन कविता संग्रह है तो ‘कोरोना विकराल’ में दोहों के अतिरिक्त ग़ज़ल और गीत भी शामिल है। अतः ‘बदल गए दस्तूर’ को कोरोना-केंद्रित हिंदी का प्रथम दोहा-संग्रह माना जा सकता है। डॉ मानव ने बताया कि विमोचन के उपरांत शीघ्र ही उनकी यह काव्य कृति पाठकों के हाथों में होगी।
— प्रियंका सौरभ