ग़ज़ल
चपला सी वह चंचल है , लहरों सा पाना,
माँ बाप की उसको दिल की धड़कन माना
कन्या भ्रूण हत्या कर तू बनता अंजाना,
बेटी मेरे सूनेपन के होठो का अफ़साना
सुता तो कुदरत का अनुपम वरदान सी है,
दुनियाँ के लिए भरपूर प्रेम मान निभाना
माता-पिता के घर की शान होती है बेटी,
दो कुलों की आन वान शान है बेटी पाना
भरे सुनहरे कल का ये अरमान से है बेटी,
परिवार का सुन्दर सम्मान का बेटी खज़ाना
सुन्दर सहनशीलता का शांत सा सागर है
हो क्रोध में दुर्गा का अवतार है बेटी बताना
पहले वो मर्यादा चहारदीवारी में कैद सी थी,
अब पंख लगा उड़ रही है बेटियाँ सियानियाँ
जल थल नभ को अपने कदमों के निशान
रोशन कर आगे आ बनाती बेटियाँ कहानियाँ
बेटों को साथ ही बढ रही है सब बेटियाँ
वृद्ध माता-पिता का सहारा बेटियाँ सुहानिया
— रेखा मोहन