जीवन नाम है बहार का
जीवन पतझड़ नहीं
नाम है बहारों का
पतझड़ तो इक हिस्सा है
इस जीवन का
ऋतु आती है
ऋतु जाती है
साथ में अपने
एक नया अंदाज
भी तो लाती है
जीवन में न हो
नयापन कोई
तो जीने की
आरजू भी क्या
जीवन तो है
इक दरिया मौजों का
चलो बह लें
दरिया की लहरों के
साथ
होंगी अठखेलियां
जब साथ इसके
सलीका भी आ जाएगा
इसमें तैरने का
आने लगेगी
मौज इसकी लहरों पर
जिंदगी तब
लगने लगेगी
हसीन
फिर आएगा मज़ा
इस बहार का
तब पतझड़ नहीं
जिंदगी दिखने लगेगी
एक मासुका सी