घर परिवार और देश का भविष्य
पिता जी को लौटकर आते देख शिवपूजन आश्चर्य चकित हो बोला- क्या बात है पिताजी, बस छूट गई क्या ?
पिता – “नही, मैंने सोचा मैं गाँव में अकेले रहते तुम लोगो की चिंता करता रहूंगा और यहाँ तुम मेरी । तुम अपने काम में बहुत व्यस्त रहते हो । इसी शहर में रहते मैं बच्चें की देखभाल भी कर सकूँगा । बच्चो में संस्कार माँ-बाप और दादा दादी से ही आते है ।
शिवपूजन कहने लगा -“पिताजी, मैंने तो ऊपर के दोनों कमरे ढाई हजार रुपये माह के किराए पर देकर एक माह का अग्रिम भी ले लिया ।वह बस सामान लेकर आता ही होगा ।
पिता बोले- “बेटा, अच्छा किया । रात को तेरी और बहूँ की बाते सुनकर मुझे लगा तुम्हें किराए की आय की सख्त आवश्यकता है । मैंने इसी शहर में कमरा किराये पर ले लिया है । मकान मालिक का कपड़े का बड़ा शोरूम है, जहाँ उसने मुझे दस हजार रुपये माहवार पर काम पर रख लिया है । गाँव जाकर तो तुम पर बोझ ही बनता । मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है । संस्कारी और योग्य बच्चों के हाथों में ही घर परिवार और देश का उज्ज्वल भविष्य निर्भर है ।
शिवपूजन और उसकी पत्नी आँख नही मिला पा रहे थे ।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला