लघुकथा

बादशाह

”बेगुनाही साबित होने पर आज सेठ जी के साले मुन्नालाल की ससम्मान रिहाई हो गई थी. सारा हर्जाना भी मिलेगा.” सेठ जी के लिए यह केवल एक समाचार ही नहीं था, अपनी सोच के संकरेपन का द्योतक भी था. शर्मिंदगी का सूचक भी!

नाम उनका अमीरचंद था, पर सब उसको सेठ जी कहकर ही पुकारते थे, शानो-शौकत सेठ जैसी जो थी!

सेठ जी के साले साहब का नाम मुन्नालाल था. नाम मुन्नालाल हुआ तो क्या हुआ! था तो वह अभियंता!

”अभियंता याने धन का अंबार!” सेठ जी का मानना था.

शानो-शौकत उसकी भी सेठ से कम नहीं थी! सो धन के अंबार वाले को सेठ जी भी सम्मान की दृष्टि से देखते थे. सेठ जी के लिए धन ही सम्मान जो था!

”अजी सुनती हो, तुम्हारा भाई हवाला में धरा गया है! अब तो लगता है, हवालात में ही उसका निवास होगा, उसकी हवेली भी नहीं रहेगी!” सेठ जी ने कहा.

”क्या कहते हो जी! मेरा भाई ऐसे नहीं कर सकता.” सेठ जी की अर्द्धांगिनी साहिबा चकित थीं.

”अब मैं क्या जानूं? वह हवालात में है. वाट्सऐप पर समाचार भेज दिया है, पढ़ लेना.” सेठ जी सुगबुगाए.

यह सुगबुगाहट सेठ जी को अंदर से हर्षित कर रही थी. साले (रिश्ते में) को अब पता लगेगा ऊपर की कमाई का भाव!”

कोर्ट ने उसको अपराधी घोषित किया या नहीं सेठ जी के लिए तो वह घोषित अपराधी ही था! साला यानी जोरू का भाई, जोरू की शामत आई.

अब जब कोर्ट से बेगुनाही का फैसला आ गया है, हवालात से रिहाई भी हो गई है, तो सेठ जी जोरू से आंख मिलाते भी डर रहे थे.

कल का प्यादा आज बादशाह जो बन गया था!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “बादशाह

  • लीला तिवानी

    शतरंज के खेल में प्यादा और बादशाह————–शतरंज (चैस) दो खिलाड़ियों के बीच खेला जाने वाला एक बौद्धिक एवं मनोरंजक खेल है। चतुरंग नाम के बुद्धि-शिरोमणि ब्राह्मण ने पाँचवीं-छठी सदी में यह खेल संसार के बुद्धिजीवियों को भेंट में दिया। समझा जाता है कि यह खेल मूलतः भारत का आविष्कार है, जिसका प्राचीन नाम था- ‘चतुरंग’; जो भारत से अरब होते हुए यूरोप गया और फिर १५/१६वीं सदी में तो पूरे संसार में लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गया। इस खेल की हर चाल को लिख सकने से पूरा खेल कैसे खेला गया इसका विश्लेषण अन्य भी कर सकते हैं।

    शतरंज एक चौपाट (बोर्ड) के ऊपर दो व्यक्तियों के लिये बना खेल है। चौपाट के ऊपर कुल ६४ खाने या वर्ग होते है, जिसमें ३२ चौरस काले या अन्य रंग ओर ३२ चौरस सफेद या अन्य रंग के होते है। खेलने वाले दोनों खिलाड़ी भी सामान्यतः काला और सफेद कहलाते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, वजीर, दो ऊँट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक होते है। बीच में राजा व वजीर रहता है। बाजू में ऊँट, उसके बाजू में घोड़े ओर अंतिम कतार में दो दो हाथी रहते है। उनकी अगली रेखा में आठ प्यादा या सैनिक रहते हैं।

    चौपाट रखते समय यह ध्यान दिया जाता है कि दोनो खिलाड़ियों के दायें तरफ का खाना सफेद होना चाहिये तथा वजीर के स्थान पर काला वजीर काले चौरस में व सफेद वजीर सफेद चौरस में होना चाहिये। खेल की शुरुआत हमेशा सफेद खिलाड़ी से की जाती है।

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