कविता

 कविता

कठिन है ऐसी स्त्री से प्रेम करना,
जो सच को सच और
झूठ को झूठ कहने का
दम रखती है।
जो पुरुष के अहम के लिए
नहीं मांगती माफी!
बेवजह झुकना नहीं जानती,
ना सर झुका कर चलती है
किसी पुरुष के पीछे!
सीढियां चढ़ने के लिये,
सड़क पार करने के लिये,
नहीं थामती किसी पुरूष का हाथ!
हर बार वह नहीं करती समझौते!
अपने स्वार्थ-सिद्धि के लिए नहीं चाटती
किसी के तलवे,
ना सहती है किसी के अहंकार को!
अपने उसूल, नियम व शर्तें वो खुद बनाती है!
स्वीकार नहीं करती किसी की प्रभुता!
बस तब तक…
जब तक,
वो नहीं पड़ती
किसी के प्रेम में!
ज्यों ही उसकी साँसों में समाती है,
सच्चे प्रेम की सुगंध!
उसे दिखती है, उम्मीद की किरण!
परे रख देती है वो सारे सिद्धांतों,
उसूलों और आदर्शों को।
बन जाती है एक नदी!
सब कुछ जैसे समर्पित करने समंदर में!
वो खुद ही बांध लेती है अपने इर्द-गिर्द
प्रेम का धागा!
और सर झुका कर स्वीकार लेती है,
प्रेम का हर बंधन!
— मौसमी चन्द्रा

मौसमी चन्द्रा

अध्यापिका लेखिका व कहानीकार पटना,बिहार