सदाबहार काव्यालय: तीसरा संकलन- 6
कौन किसको पीता है? (कविता)
यों तो आदमी समझता है, वही शराब को पीता है,
ध्यान से देखो असल में, कौन किसको पीता है?
न मिलती हो भले घर में, बच्चों को दो रोटी
नहीं हो चाहे पत्नि कोअदद, इक साड़ी मोटी-झोटी
मिले पीने वाले को नियम से, बोतल एक बड़ी-छोटी
भले रखनी पड़े गिरवी उसे, तन की बोटी-बोटी
उसे तो चाहिए पीने को, वह बोतल को पीता है
ध्यान से देखो असल में, कौन किसको पीता है?
न रहता होश पीने पर, किसी को क्या-क्या कहना है
उसे क्या वह तो पीता है, मगर पत्नि को सहना है
पिटाई-मार खाकर उसे तो, फिर भी चुप ही रहना है
है उसकी किस्मत ही ऐसी, उसे मन मार देना है
कहेगा कौन उसको क्यों, व्यर्थ ही जहर को पीता है
ध्यान से देखो असल में, कौन किसको पीता है?
सुना उसने भी है मदिरा, जहर मीठा-सा है होता
लगाई जिसने होठों से, रहा जीवन भर वह रोता
कमाई श्रम से जो पूंजी, उसे क्षण भर में खोना है
तबाही होती सेहत की रहेगा, कब तक वह सोता?
बिके जो एक बोतल पर, जीते जी ही मरता है
ध्यान से देखो असल में, कौन किसको पीता है?
ये अक्सर होता है पहले, आदमी मदिरा को पीता है
बलि देता है तन-मन की, हानि धन की भी सहता है
गंवाता प्यार पत्नि का, कहर बच्चों पर होता है
नाम बद होता है उसका, समाज में रुतबा गिरता है
अंत में होता है ऐसा, शराब आदमी को पीता है
ध्यान से देखो असल में, कौन किसको पीता है?
27. 3. 1986
-लीला तिवानी
मेरा संक्षिप्त परिचय
मुझे बचपन से ही लेखन का शौक है. मैं राजकीय विद्यालय, दिल्ली से रिटायर्ड वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका हूं. कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास आदि लिखती रहती हूं. आजकल ब्लॉगिंग के काम में व्यस्त हूं.
मैं हिंदी-सिंधी-पंजाबी में गीत-कविता-भजन भी लिखती हूं. मेरी सिंधी कविता की एक पुस्तक भारत सरकार द्वारा और दूसरी दिल्ली राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं. कविता की एक पुस्तक ”अहसास जिंदा है” तथा भजनों की अनेक पुस्तकें और ई.पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है. इसके अतिरिक्त अन्य साहित्यिक मंचों से भी जुड़ी हुई हूं. एक शोधपत्र दिल्ली सरकार द्वारा और एक भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं.
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सदाबहार काव्यालय के हर अंक में आपको एक नया रंग देखने को मिलता है. इस बार संदेश-रंग है. संदेश जो व्यक्ति के लिए है, परिवार के लिए है, देश-समाज के लिए है. संदेश जो मद्यपान-निषेध के लिए है. मद्य या शराब वह नशा है, एक बार लग जाए, तो न जाने किस-किस की आहुति ले लेता है. परिवार की सुख-शांति, संस्कारों की कांति सब नशे की ज्वाला में भस्म हो जाते हैं. नशा नाश का कारन है, मद्यपान-निषेध ही इसका निवारण है. आज प्रस्तुत है समाज के लिए कोढ़ और नासूर बने नशे के एक रूप मद्यपान के निषेध के संदेश-रंग का.