गीत/नवगीत

“हर सिक्के के दो पहलू हैं”

“हर सिक्के के दो पहलू हैं”

हर सिक्के के दो पहलू हैं,
उलट-पलटकर देख ज़रा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।

हर पत्थर हीरा बन जाता,
जब किस्मत नायाब हो,
मोती-माणिक पत्थर लगता,
उतर गई जब आब हो,
इम्तिहान में पास हुआ वो,
तपकर जिसका तन निखरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।

नंगे हैं अपने हमाम में,
नागर हों या बनचारी,
कपड़े ढकते ऐब सभी के,
चाहे नर हों या नारी,
पोल-ढोल की खुल जाती तो,
आता साफ नज़र चेहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।

गर्मी की ऋतु में सूखी थी,
पेड़ों-पौधों की डाली,
बारिश के मौसम में छा जाती,
झाड़ी में हरियाली,
पानी भरा हुआ गड्ढा भी,
लगता सागर सा गहरा।
बिन परखे क्या पता चलेगा,
किसमें कितना खोट भरा।।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है