गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

मुस्कुराते रहो

प्यार के गीत गाते रहो ।
हर हाल मुस्कुराते रहो ॥
जीत हार से होकर परे ।
जश्न ए खुशी मनाते रहो ॥
छोड़ परेशानी जमाने की ।
तराने नये गुनगुनाते रहो ॥
गिरा दीवारें जात पात की ।
गिरों को गले से लगाते रहो ॥
बढ़ता चल,चलना ही जिंदगी ।
ठहरों को बात ये बताते रहो ॥
चमकना तन ही काफी नहीं ।
मैले मन का भी मिटाते रहो ॥
कुछ दूरियां ले आती नजदीकी ।
नुस्खा-ए-पलाश आजमाते रहो ॥

डॉ. अपर्णा त्रिपाठी

मैं मोती लाल नेहरू ,नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेकनालाजी से कम्प्यूटर साइंस मे शोध कार्य के पश्चात इंजीनियरिंग कालेज में संगणक विज्ञान विभाग में कार्यरत हूँ ।हिन्दी साहित्य पढना और लिखना मेरा शौक है। पिछले कुछ वर्षों में कई संकलनों में रचानायें प्रकाशित हो चुकी हैं, समय समय पर अखबारों में भी प्रकाशन होता रहता है। २०१० से पलाश नाम से ब्लाग लिख रही हूँ प्रकाशित कृतियां : सारांश समय का स्रूजन सागर भार -२, जीवन हस्ताक्षर एवं काव्य सुगन्ध ( सभी साझा संकलन), पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनायें ई.मेल : [email protected] ब्लाग : www.aprnatripathi.blogspot.com