हमेशा की तरह
असर
कुछ देर तक रहेगा
हलचल मचाती
जज़्बातों का
फिर कुछ देर बाद
बहेगी नदी ख़यालों की
पहले की तरह
हिसाब-किताब होगा
दिन के आठों पहरों का
साल के बारह महीनों का
उस पल तक जितना जिएं
उन सभी पलों का
उलझ जायेंगे
जब बुरी तरह
सुलझने की
कोशिश होगी
हमेशा की तरह…
— सविता दास सवि