Author: सविता दास सवि

कविता

अधूरा_

दिन सिमटने लगे,विस्तार अपना मिटाकरकाँस के फूलउत्सवों केप्रतिनिधि बने,हरे-भरे खेतसोने की बालियां पहनेघरों में जाने काइंतजार करने लगे,उमस भरी दुपहरीकुम्हलाने

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